Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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द्वितीय प्रतिपत्ति - स्त्रियों का अल्पबहुत्व
उत्तरकुरु से हरिवर्ष रम्यकवर्ष का क्षेत्र अति विस्तृत है। उनसे हैमवत हैरण्यवत क्षेत्र की अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्रियाँ संख्यातगुणी हैं और परस्पर तुल्य है । यद्यपि हरिवर्ष और रम्यकवर्ष क्षेत्रों की अपेक्षा हैमवत हैरण्यवत क्षेत्र विस्तार की अपेक्षा कम है किंतु अल्पकाल की स्थिति वाली स्त्रियाँ यहां अधिक होती है। उनसे भरत और ऐरवत क्षेत्रों की कर्मभूमिज मनुष्य स्त्रियाँ संख्यातगुणी हैं क्योंकि स्वभाव से प्रचुरता है। स्वस्थान में परस्पर तुल्य है क्योंकि दोनों क्षेत्र समान है। उनसे पूर्वविदेह और पश्चिमविदेह क्षेत्रों की कर्मभूमिज मनुष्य स्त्रियाँ संख्यातगुणी हैं क्योंकि क्षेत्र की प्रचुरता है और क्षेत्र समान होने से परस्पर तुल्य है। चौथा अल्पबहुत्व इस प्रकार है
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एयासि णं भंते! देवित्थियाणं भवणवासीणं वाणमंतरीणं जोइसिणीणं वेमाणिणीणं य कयरा कयराहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?
गोयमा! सव्वत्थोवाओ वेमाणिय देवित्थियाओ, भवणवासि देवित्थियाओ असंखेज्जगुणाओ, वाणमंतर देवित्थियाओ असंखेज्जगुणाओ, जोइसियदेवित्थियाओ संखेज्जगुणाओ ॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! भवनवासी, वाणव्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक देव स्त्रियों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक है ?
उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़ी वैमानिक देवस्त्रियाँ उनसे भवनवासी देवस्त्रियाँ असंख्यातगुणी, उनसे वाणव्यंतर देवियाँ असंख्यातगुणी और उनसे भी ज्योतिषी देवस्त्रियाँ संख्यातगुणी हैं।
विवेचन - चौथे अल्पबहुत्व में चार प्रकार की देवस्त्रियों के अल्पबहुत्व का वर्णन किया गया है जो इस प्रकार है - सबसे थोड़ी वैमानिक देवियाँ हैं क्योंकि अंगुलमात्र क्षेत्र की प्रदेश राशि के दूसरे वर्गमूल को तीसरे वर्गमूल से गुणा करने पर जितनी प्रदेश राशि आती है उतने प्रमाण वाली घनीकृत लोक की एक देश वाली श्रेणियों में जितने आकाश प्रदेश हैं उनका बत्तीसवां भाग कम करने पर जो राशि आवे उतने प्रमाण की सौधर्म देवलोक की देवियाँ और ईशान देवलोक की देवियां हैं। उनसे भवनवासी देवियाँ असंख्यातगुणी कही गई हैं क्योंकि अंगुलमात्र क्षेत्र की प्रदेश राशि के प्रथम वर्ग मूल के संख्यातवें भाग में जितनी प्रदेश राशि होती है उतनी श्रेणियों के जितने आकाश प्रदेश हैं उनका बत्तीसवां भाग कम करने पर जो राशि होती है उतने प्रमाण की भवनवासी देवियाँ हैं। उनसे वाणव्यंतर देवियाँ असंख्यातगुणी हैं क्योंकि एक प्रतर में संख्यात योजन प्रमाण वाले एक प्रदेशी श्रेणी प्रमाण जितने खण्ड हों उनमें से बत्तीसवां भाग कम करने पर जो राशि आती है उतने प्रमाण की वाणव्यंतर देवियाँ हैं। वाणव्यंतर देवियों से भी ज्योतिषी देवियाँ संख्यात गुणी हैं क्योंकि २५६ अंगुल प्रमाण के जितने खण्ड एक प्रतर में होते हैं उनमें से बत्तीसवां भाग कम करने पर जितनी प्रदेश राशि होती है
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