Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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द्वितीय प्रतिपत्ति - पुरुष के भेद
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स्थिति दो प्रकार की कही गई है - १. कर्मरूपतावस्थान रूप और २. अनुभव योग्य। यहां जो स्थिति बताई गई है वह कर्मरूपतावस्थान रूप है। अनुभव योग्य स्थिति तो अबाधाकाल से हीन होती है। जिस कर्म की जितने कोडाकोडी सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति होती है उतने ही सौ वर्ष उसका अबाधाकाल होता है। जैसे स्त्रीवेद की उत्कृष्ट स्थिति पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम की है तो उसका अबाधाकाल पन्द्रह सौ वर्षों का होता है अर्थात् पन्द्रह सौ वर्ष तक स्त्रीवेद कर्म प्रकृति उदय में नहीं आती और अपना फल नहीं देती है। अबाधाकाल से हीन कर्म स्थिति ही अनुभव योग्य होती है। अबाधाकाल बीतने पर ही कर्मदलिकों की रचना होती है अर्थात् वह प्रकृति उदय में आती है जिसे कर्मनिषेक कहा जाता है।
स्त्री वेद का स्वभाव इत्थिवेए णं भंते! किं पगारे पण्णत्ते? गोयमा! फुफु अग्गिसमाणे पण्णत्ते, सेत्तं इत्थियाओ॥५१॥
कठिन शब्दार्थ - किंपगारे - किस प्रकार का, फुफुअग्गिसमाणे - फुफुक (करीष-छाणे) की अग्नि समान। .
भावार्थ- प्रश्न - हे भगवन्! स्त्रीवेद किस प्रकार का कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! स्त्रीवेद फुफुक (करिष-छाणे-कण्डे की) अग्नि के समान होता है। इस प्रकार स्त्रियों का निरूपण हुआ।
विवेचन - स्त्रीवेद फुम्फुक-छाणे (कण्डे) की अग्नि के समान कहा गया है जैसे कण्डे की अग्नि धीरे धीरे जागृत होती है और देर तक बनी रहती है उसी प्रकार स्त्रीवेद का स्वभाव होता है। इस प्रकार स्त्रीवेद का अधिकार पूर्ण हुआ। .
पुरुष के भेद से किं तं पुरिसा?
पुरिसा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - तिरिक्खजोणियपुरिसा, मणुस्सपुरिसा देवपुरिसा॥
भावार्थ - पुरुष कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं, वे इस प्रकार हैं - १. तिर्यंचयोनिक पुरुष २. मनुष्य पुरुष और ३. देव पुरुष। ..
से किं तं तिरिक्खंजोणियपुरिसा?
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