Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
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सागरोपम के सातवें भाग (३") और उत्कृष्ट पन्द्रह कोटाकोटि सागरोपम की है। पन्द्रह सौ वर्षों का अबाधाकाल हैं। अबाधाकाल से रहित जो कर्मस्थिति है वही अनुभव योग्य होती है अतः वही कर्मनिषेक है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में स्त्रीवेद की जघन्य और उत्कृष्ट बंध स्थिति का कथन किया गया है जो इस प्रकार है - स्त्रीवेद कर्म की बंध स्थिति जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के डेढ़ सातिया भाग (") और उत्कृष्ट पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम की है। जघन्य स्थिति दो प्रकार से समझी जाती है
१. जिस प्रकृति की जो उत्कृष्ट स्थिति है उसमें मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति ७० कोडाकोडी - सागरोपम का भाग देने पर जो राशि आती है उसमें पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम करने पर उस प्रकृति की जघन्य स्थिति प्राप्त होती है। जैसे-स्त्रीवेद की उत्कृष्ट स्थिति १५ कोडाकोडी' सागरोपम है इसमें मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति ७० कोडाकोडी सागरोपम का भाग देने पर कोडाकोडी सागरोपम प्राप्त होता है। इस राशि में छेद-छेदक सिद्धान्त के अनुसार दस का भाग । देने पर १" कोडाकोडी सागरोपम आता है इसमें पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम करने पर स्त्रीवेद कर्म की जघन्य बंध स्थिति होती है। यह व्याख्या मूल टीकानुसार है।
२. कर्मप्रकृति संग्रहणीकार ने जघन्य स्थिति की विधि इस प्रकार बताई है - वग्गुक्कोसठिईणं मिच्छत्तुक्कोसगेण जे लखें।
सेसाणं तु जहण्णं पलियासंखेज्जगेणूणं॥ ' अर्थात् - जिस जिस कर्म का जो प्रकृति समुदाय है वह उसका वर्ग कहलाता है जैसे ज्ञानावरणीय कर्म का प्रकृति समुदाय ज्ञानावरणीय वर्ग कहा जाता है। वर्गों की जो अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थिति है उसमें मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति का भाग देने पर जो राशि प्राप्त होती है उससे पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम करने से उस वर्ग की जघन्य स्थिति प्राप्त होती है। जैसे स्त्रीवेद नोकषाय मोहनीय कर्म की प्रकृति है। नोकषाय मोहनीय की उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम है उसमें मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति ७० कोडाकोडी सागरोपम का भाग देने पर - कोडाकोडी सागरोपम (दो कोडाकोडी सागरोपम का सातवां भाग) आता है उसमें से पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम करने से स्त्रीवेद कर्म की जघन्य बंध स्थिति आती है।
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