Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
उत्तर - हे गौतम! स्थावर का अन्तर त्रस के संचिट्ठणकाल जितना होता है अर्थात् जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट असंख्यात काल। काल की अपेक्षा असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी, क्षेत्र की अपेक्षा असंख्यात लोक।
प्रश्न - हे भगवन्! त्रस का अन्तर कितना है? उत्तर - हे गौतम! त्रस का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में स्थावर और त्रस जीव का अन्तर (विरह काल) बताया गया है। असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल से और क्षेत्र से असंख्यात लोक जितना अन्तर स्थावर जीव के स्थावरत्व को छोड़ने के बाद पुन: स्थावर बनने में पड़ता है। यह अन्तर तेउकाय और वायुकाम में जाने की अपेक्षा समझना चाहिये।
त्रसकाय से त्रसत्व को छोड़ने के बाद पुनः त्रसत्व प्राप्त करने में जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाय जितना समय लगता है। उत्कृष्ट वनस्पतिकाल अर्थात् काल से अनन्त उत्सर्पिणियां अवसर्पिणियां और क्षेत्र से अनन्त लोक प्रमाण जिसमें असंख्यात पुद्गल परावर्त हो जाते हैं वे पुद्गल परावर्त आवलिका के असंख्यातवें भाग में जितने समय होते हैं उतने प्रमाण होते हैं।
त्रस और स्थावर का अल्पबहुत्व एएसि णं भंते! तसाणं थावराण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा तसा थावरा अणंतगुणा, से तं दुविहा संसार समावण्णगा जीवा पण्णत्ता॥४३॥ पढमा दुविह पडिवत्ती समत्ता॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इन त्रस और स्थावर जीवों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं?
उत्तर - हे गौतम! सबसे थोड़े त्रस हैं, उनसे स्थावर जीव अनन्तगुणा हैं। यह दो प्रकार के संसारी जीवों की प्ररूपणा हुई। द्विविधा प्रतिपत्ति नामक प्रथम प्रतिपत्ति पूर्ण।
विवेचन - सबसे थोड़े त्रस जीव कहे हैं क्योंकि वे असंख्यात हैं और उनसे स्थावर अनन्तगुणा हैं क्योंकि वे अजघन्योत्कृष्ट अनन्तानन्त हैं। यह दो प्रकार के जीवों की प्रतिपत्ति रूप प्रथम प्रतिपत्ति का निरूपण हुआ।
॥प्रथम प्रतिपत्ति समाप्त।
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