Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
जीवाजीवाभिगम सूत्र
पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक अठारह पल्योपम का कहा है जो इस प्रकार समझना चाहिये कोई जीव पूर्वकोटि प्रमाण की आयु वाली मनुष्य स्त्रियों में या तिर्यच स्त्रियों में पांच या छह बार उत्पन्न हो जाय और फिर वहां से ईशान देवलोक में दो बार उत्कृष्ट स्थिति वाली परिगृहीता देवियों में उत्पन्न हो, अपरिगृहीता देवियों में नहीं । इस प्रकार स्त्रीवेद का उत्कृष्ट अवस्थान काल पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक अठारह पल्योपम का सिद्ध हो जाता है ।
१२६
*****************************************************************
३. तृतीय आदेश से स्त्रीवेद का अवस्थान काल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक चौदह पल्योपम कहा है जो इस प्रकार है - कोई जीव पूर्वकोटि प्रमाण आयु वाली मनुष्य स्त्रियों में या तिर्यंच स्त्रियों में पांच या छह बार उत्पन्न हो जाय और इसके बाद सौधर्म कल्प में सात पल्योपम की उत्कृष्ट स्थिति वाली परिगृहीता देवियों में दो बार उत्पन्न हो जाय तो यह उत्कृष्ट स्थिति होती है।
४. चतुर्थ आदेश से स्त्रीवेद का अवस्थान काल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक सौ पल्योपम कहा गया है, जो इस प्रकार हैं- कोई जीव पूर्वकोटि प्रमाण आयु वाली मनुष्य स्त्रियों में या तिर्यंच स्त्रियों में पांच अथवा छह बार उत्पन्न हो जाय और दो बार ५० पल्योपम की उत्कृष्ट स्थिति वाली सौधर्म कल्प की अपरिगृहीता देवियों में देवी रूप से उत्पन्न हो तो यह उत्कृष्ट स्थिति होती है ।
५. पंचम आदेश से स्त्रीवेद का अवस्थान काल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक पल्योपम पृथक्त्व कहा गया है जो इस प्रकार है - कोई जीव पूर्व कोटि आयु वाली मनुष्य स्त्रियों में या तिर्यंच स्त्रियों में सात भव करके आठवें भव में देवकुरु आदि की तीन पल्योपम की स्त्रियों में स्त्री रूप से उत्पन्न हो और वहां से मर कर सौधर्म देवलोक की जघन्य स्थिति वाली देवियों में देवी रूप से उत्पन्न हो तो पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक पल्योपम पृथक्त्व प्रमाण स्त्रीवेद का अवस्थान काल सिद्ध होता है ।
स्त्री की कायस्थिति में पांच मान्यता बताई है । ११० पल्य प्रत्येक करोड़ पूर्व आदि । स्त्री के लगातार आठ भव से अधिक नहीं होंगे। यद्यपि सन्नी की कायस्थिति प्रत्येक सौ सागर झाझेरी है । पर स्त्री रूप से ८ भव से अधिक नहीं। यदि देवी के साथ करे तो दो भव 'देवी के, ६ भव मनुष्यणी या तिर्यंचणी के करे । केवल मनुष्यणी या तिर्यंचणी के भी आठ से अधिक नहीं ।
इस प्रकार सूत्रकार ने स्त्री, स्त्री रूप में निरन्तर कितने काल तक रह सकती है इसके उत्तर में पांच अपेक्षाओं से कथन किया है। ये पांचों ही आदेश अपनी अपनी अपेक्षा से सही है। उक्त पांच आदेशों में से कौनसा आदेश समीचीन है, इसका निर्णय अतिशय ज्ञानी या सर्वोत्कृष्ट श्रुतलब्धि सम्पन्न ही कर सकते हैं। वर्तमान में वैसी स्थिति न होने से सूत्रकार ने पांचों आदेशों का उल्लेख कर दिया है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org