Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
- उत्तर - हे गौतम! अन्तरद्वीपज अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्रियाँ अन्तरद्वीपज अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्रियों के रूप में जन्म की अपेक्षा जघन्य देशोन पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम पल्योपम का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवां भाग तक तथा संहरण की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्व कोटि अधिक पल्योपम के असंख्यातवें भाग तक रह सकती है।
देव स्त्री की कायस्थिति देवित्थी णं भंते! देवित्थित्ति कालओ केवच्चिरं होइ? ... गोयमा! जच्चेव दिई सच्चेव संचिट्ठणा भाणियव्वं ॥४८॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! देव स्त्री, देव स्त्री के रूप में कितने काल तक रह सकती है? उत्तर- हे गौतम! जो उसकी भवस्थिति है वही उसका अवस्थान काल हैं।
विवेचन - हेमवत ऐरण्यवत, हरिवर्ष रम्यकवर्ष, देवकुरु उत्तरकुरु और अन्तरद्वीपज स्त्रियों की जन्म की अपेक्षा जो जिसकी स्थिति है वही उसका अवस्थान काल है। संहरण की अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से जिसकी जो स्थिति है उससे देशोन पूर्व कोटि अधिक अवस्थान काल समझना चाहिए।
मनुष्य स्त्रियों में क्षेत्र की अपेक्षा में सम्मुचय मनुष्य क्षेत्र होने से तीन पल्योपम और पूर्वकोटि पृथक्त्व कायस्थिति बताई गई है।
देवियों की जो भवस्थिति है वही उनका अवस्थानकाल है क्योंकि तथाविध भव स्वभाव से उनमें कायस्थिति नहीं होती है कारण देवी मरकर पुनः देवी नहीं होती।
स्त्रियों का अंतर इत्थी णं भंते! केवइयं कालं अंतर होइ?
गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अणंतंकालं वणस्सइकालो, एवं सव्वासिं तिरिक्खित्थीणं।
मणुस्सित्थीए खेत्तं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उवकोसेणं वणस्सइकालो। धम्मचरणं पडुच्च जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अणंतंकालं जाव अवड्डपोग्गलपरियट्ट देसूणं, एवं जाव पुव्वविदेह अवर विदेहियाओ।
कठिन शब्दार्थ - वणस्सइकालो - वनस्पतिकाल, अवडपोग्गलपरियट्ट - अपार्द्ध (अर्द्ध) पुद्गल परावर्त।
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