Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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"द्वितीय प्रतिपत्ति - स्त्री वेद की कायस्थिति।
१३१
हरिवास रम्मगवास अकम्मभूमग मणुस्सित्थी णं भंते!० जम्मणं पडुच्च जहण्णेणं देसूणाई दो पलिओवमाइं पलिओवंमस्स असंखेजइभागेणं ऊणगाइं उक्कोसेणं दो पलिओवमाइं। संहरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं दो पलिओवमाइं देसूणपुवकोडिमब्भहियाइं। ___ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! हरिवास रम्यकवास अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्री हरिवास रम्यकवास अकर्मभूमज मनुष्य स्त्री के रूप में कितने काल तक रह सकती है?
उत्तर - हे गौतम! हरिवास रम्यकवास अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्री, हरिवास रम्यकवास अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्री के रूप में जन्म की अपेक्षा जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम दो पल्योपम तक और उत्कृष्ट दो पल्योपम तक तथा संहरण की अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्व कोटि अधिक दो पल्योपम तक रह सकती है।
उत्तरकुरुदेवकुरुणं०, जम्मणं पडुच्च जहण्णेणं देसूणाइं तिण्णि पलिओवमाई पलिओवमस्स असंखेजईभागेणं ऊणगाइं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं। संहरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं देसूणाए पुव्वकोडीए अब्भहियाई॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! उत्तरकुरु देवकुरु अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्री उत्तरकुरु देवकुरुं अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्री के रूप में कितने काल तक रह सकती है?
उत्तर - हे. गौतम! उत्तरकुरु देवकुरु अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्री उत्तरकुरु देवकुरु अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्री के रूप में जन्म की अपेक्षा पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम तीन पल्योपम और उत्कृष्ट से तीन पल्योपम तक तथा संहरण की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्व कोटि अधिक तीन पल्योपम तक रह सकती है।
अंतरदीवाकम्मभूमगमणुस्सित्थी णं भंते! अंतरदीवा कम्मभूमग मणुस्सित्थीत्ति कालओ केवच्चिरं होइ?
गोयमा! जम्मणं पडुच्च जहण्णेणं देसूणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पलिओवमस्स असंखेजइभागेण ऊणं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेजइभाग। साहरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेजइभागं देसूणाए पुव्वकोडीए अब्भहियं।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अन्तरद्वीपज अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्रियाँ अन्तरद्वीपज अकर्मभूमिज मनुष्य स्त्रियों के रूप में कितने काल तक रह सकती है?
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