Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
और उत्कृष्ट स्थिति देशोन (कुछ कम) पूर्व कोटि की है । जघन्य स्थिति उसी भव में परिणामों की धारा बदलने पर चारित्र से गिर जाने की अपेक्षा समझनी चाहिये। कम से कम अंतर्मुहूर्त्त काल तक तो चारित्र रहता ही है । किसी मनुष्य स्त्री ने तथाविध क्षयोपशम भाव से सर्वविरति रूप चारित्र अंगीकार किया और उसी भाव में जघन्य अंतर्मुहूर्त्त बाद वह परिणामों की धारा बदलने से पतित होकर अविरत सम्यग्दृष्टि बन गई अथवा मिथ्यात्व में चली गई अथवा चारित्र अंगीकार करने के बाद मृत्यु हो गई तब भी सातवें गुणस्थान में जघन्य अंतर्मुहूर्त काल तक रहने की तो संभावना है ही, इस अपेक्षा से चारित्र धर्म की अपेक्षा जघन्य स्थिति अंतर्मुहूर्त्त की कही गई है।
दूसरी अपेक्षा से सर्वविरति के स्थान पर देशविरति रूप चारित्र धर्म होने पर भी जघन्य स्थिति अंतर्मुहूर्त की संभव है क्योंकि देशविरति के भी बहुत से भंग होते हैं।
शंका - उभय रूप चारित्र की संभावना होते हुए भी देशविरति का ही ग्रहण क्यों किया जाय ? समाधान - यहां देशविरति का ग्रहण करने का कारण यह है कि प्रायः सर्वविरति, देशविरति पूर्वक होती है । टीका में भी कहा है कि
सम्मत्तम्मि उ लद्धे पलिय पुहुत्तेण सावओ होड़ ।
चरणोक्समखयाणं सागर संखतरा होति ॥
अर्थात् सम्यक्त्व प्राप्ति के पश्चात् पल्योपम पृथक्त्वकाल में श्रावकत्व की प्राप्ति और चारित्र मोहनीय का उपशम या क्षय संख्यात सागरोपम के बाद होता है।
धर्माचरण की अपेक्षा उत्कृष्ट स्थिति देशोन पूर्व कोटि की कही गई है क्योंकि एक करोड़ पूर्व की आयु वाली स्त्रियों के आठ वर्ष की उम्र के पहले चारित्र परिणाम नहीं आते। आठ वर्ष की उम्र के बाद चारित्र अंगीकार करे और करोड़ पूर्व के अन्तिम समय तक चारित्र का पालन करे इस अपेक्षा से उत्कृष्ट स्थिति करोड़ पूर्व की कही है और आठ वर्ष कम होने से देशोन (कुछ कम) कहा गया है। इस प्रकार मनुष्य स्त्रियों की औधिक (सामान्य) भवस्थिति का दो अपेक्षाओं से कथन किया गया है। अब सूत्रकार अलग-अलग क्षेत्रों की मनुष्य स्त्रियों की स्थिति का वर्णन करते हैं -
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कम्मभूमयमणुस्सित्थीणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
गोयमा ! खेत्तं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई, धम्मचरणं पडुच्च जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी ।
भावार्थ- प्रश्न- हे भगवन् ! कर्मभूमिज मनुष्य स्त्रियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर - हे गौतम! कर्मभूमि के मनुष्य स्त्रियों की स्थिति क्षेत्र की अपेक्षा से जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है और चारित्र धर्म की अपेक्षा जघन्य स्थिति अंतर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट स्थिति देशोन (कुछ कम ) पूर्व कोटि की है।
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