Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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. प्रथम प्रतिपत्ति - देवों का वर्णन
९९.
२३. गति आगति द्वार - मनुष्य पांच गतियों (नरक, तिर्यंच, मनुष्य, देव और सिद्ध) में जाने वाले और चार गतियों से आने वाले होते हैं। मनुष्य प्रत्येक शरीरी और संख्यात होते हैं। इस प्रकार मनुष्यों का निरूपण हुआ।
देवों का वर्णन से किं तं देवा? देवा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा - भवणवासी वाणमंतरा जोइसिया वेमाणिया। भावार्थ - देव कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
देव चार प्रकार के कहे गये हैं, वे इस प्रकार हैं - १. भवनवासी २. वाणव्यंतर ३. ज्योतिषी और ४. वैमानिक। . विवेचन - प्रश्न - देव किसे कहते हैं ?
उत्तर - देवगति नाम कर्म के उदय वालों को देव कहते हैं। देव शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार है- संस्कृत में 'दिवु-क्रीडा विजिगीषा व्यवहार द्युति स्तुति मोद मद स्वप्नकान्ति गतिषु।' इस प्रकार दिवु धातु के दस अर्थ हैं। "दीव्यन्ति निरूपम क्रीडा सुखम् अणुभवन्ति इति देवाः" अथवा "यथेच्छं प्रमोदन्ते इति देवाः" अर्थात् निरूपम क्रीड़ा सुख का जो अनुभव करते हैं अथवा सदा प्रसन्नचित्त रहते हैं उन्हें देव कहते हैं। देव के चार भेद हैं - १. भवनवासी २. वाणव्यंतर ३. ज्योतिषी और ४. वैमानिक।
प्रश्न - भवनवासी देव किसे कहते हैं ? - उत्तर - जो देव प्रायः भवनों में रहते हैं उन्हें भवनपति या भवनवासी देव कहते हैं। टीकाकार ने भवनवासी शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार की है - "भवनेषु वसन्ति इत्येवंशीला भवनवासिनः एतद् बाहुल्यतो नागकुमार आदि अपेक्षया द्रष्टव्यं, तेहि प्रायो भवनेषु वसन्ति कदाचित् आवासेषु, असुरकुमारास्तु प्राचुर्येण आवासेषु कदाचिद् भवनेषु। अथ भवनानाम् आवासानां च कः प्रति विशेषः उच्यतो, भवनानि बहिव॑तानि अन्तः समचतुरस्त्राणि अधःपुष्करकर्णिका संस्थानानि, आवासा:कायमान स्थानीया महामण्डपा विविध मणि रल प्रदीप प्रभासित सकल दिक् चक्रवाला इति।"
अर्थात् जो भवनों में रहते हैं उन्हें भवनवासी कहते हैं। यह व्याख्या प्रायः नागकुमार जाति के भवनवासी देवों में घटित होती है क्योंकि वे प्रायः भवनों में रहते हैं। कभी कभी आवासों में भी रहते हैं। असुरकुमार तो प्रायः आवासों में ही रहते हैं कभी कभी भवनों में भी रहते हैं।
प्रश्न - भवन और आवास किसे कहते हैं?
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