Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम प्रतिपत्ति- मनुष्यों का वर्णन
पाते हैं। ये ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं। जो ज्ञानी हैं वे कोई दो ज्ञान वाले, कोई तीन ज्ञान 'वाले, कोई चार ज्ञान वाले और कोई एक ज्ञान वाले होते हैं। जो दो ज्ञान वाले हैं वे नियमा मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी हैं। जो तीन ज्ञान वाले हैं वे मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी हैं अथवा मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और मनः पर्यवज्ञानी हैं। जो चार ज्ञान वाले हैं वे नियमा मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी और मनः पर्यवज्ञानी हैं। जो एक ज्ञान वाले हैं वे नियमा केवलज्ञानी हैं। इसी प्रकार जो अज्ञानी हैं वे दो अज्ञान वाले अथवा तीन अज्ञान वाले हैं। वे मनयोगी, वचनयोगी, काययोगी और अयोगी भी होते हैं। वे साकार उपयोग वाले और अनाकार उपयोग वाले हैं। छहों दिशाओं के पुद्गलों को आहार रूप में ग्रहण करते हैं। वे सातवीं नरक को छोड़कर सभी नरकों से, असंख्यातवर्ष की आयु वाले तिर्यंचों को छोड़ कर सभी तिर्यंचों से, अकर्मभूमिज, अन्तरद्वीपज और असंख्यातवर्ष की आयु वाले मनुष्यों को छोड़ कर शेष मनुष्यों से तथा सभी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं।
उनकी स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की होती है। वे समवहत और असमवहत- दोनों प्रकार के मरण से मरते हैं। वे यहां से मर कर नैरयिकों में यावत् अनुत्तरौपपातिक देवों में उत्पन्न होते हैं और कोई कोई सिद्ध होते हैं यावत् सभी दुःखों का अंत करते हैं।
प्रश्न- हे भगवन् ! ये जीव कितनी गति वाले और कितनी आगति वाले कहे गये हैं ?
उत्तर - हे गौतम! ये जीव पांच गति वाले और चार आगति वाले हैं। ये प्रत्येक शरीरी और संख्यात हैं। यह मनुष्यों का वर्णन हुआ।
विवेचन - मनुष्यों में २३ द्वारों का निरूपण इस प्रकार है
१९. शरीर द्वार - मनुष्यों में पांचों शरीर (औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण) पाते हैं।
२. अवगाहना द्वार - मनुष्यों के शरीर की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट अवगाहना तीन गाऊ (कोस) की है ।
३. संहनन द्वार - मनुष्यों में छहों संहनन होते हैं।
४. संस्थान द्वार - छहों संस्थान होते हैं ।
५. कंषाय द्वार - क्रोध, मान, माया, लोभ रूप चारों कषायों वाले और अकषायी भी होते हैं ।
६. संज्ञा द्वार - चारों संज्ञा वाले और नोसंज्ञी भी हैं।
७. लेश्या द्वार - मनुष्यों में छहों लेश्या भी पाती है और अलेशी भी होते हैं।
८. इन्द्रिय द्वार - पांचों इन्द्रियां पाती है और अनिन्द्रिय भी होते हैं।
९. समुद्घात द्वार - मनुष्यों में सातों समुद्घात होते हैं।
१०. संज्ञी द्वार - मनुष्य सन्नी हैं, असन्नी नहीं और नो-सन्नी नो-असन्नी भी हैं।
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