Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम प्रतिपत्ति - मनुष्यों का वर्णन
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गब्भम्मि पुव्वकोडी, तिण्णि य पलिओवमाई परमाउं। उरभुजग पुव्वकोडी, पलिय असंखेज्जभागो य॥२॥
अर्थ - गर्भज जलचरों की उत्कृष्ट अवगाहना हजार योजन की, चतुष्पदों की छह गाऊ (कोस) की, उरपरिसरों की हजार योजन की, भुजपरिसरों की गाऊ पृथक्त्व की और खेचर जीवों की धनुष पृथक्त्व की उत्कृष्ट अवगाहना होती है ॥१॥
__गर्भज जलचर जीवों की उत्कृष्ट स्थिति पूर्व कोटि की है, चतुष्पदों की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम, उरपरिसर्प और भुजपरिसर्प जीवों की उत्कृष्ट स्थिति पूर्वकोटि की तथा खेचर जीवों की उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम का असंख्यातवां भाग की होती है॥२॥ ..
नरकों में उत्पाद के विषय में दो गाथाएं इस प्रकार है - असण्णी खलु पढमं दोच्चं च सरीसवा तइय पक्खी। सीहा जति चउत्थं उरगा पुणपंचमि पुढविं॥१॥ छट्टि च इत्थिया उ, मच्छा मणुया य सत्तर्मि पुढवि। एसो परमोववाओ बोद्धव्वो णरयपुढविसु॥२॥
अर्थ - असंज्ञी जीव मर कर पहली नरक तक जाते हैं। सरीसृप दूसरी नरक तक जाते हैं। पक्षी तीसरी नरक तक, सिंह चौथी नरक तक, सर्प पांचवीं नरक तक, स्त्रियां छठी नरक तक और मत्स्य तथा मनुष्य सातवीं नरक तक जा सकते हैं। इस प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का वानि पूरा हुआ।
मनुष्यों का वर्णन से किं तं मणुस्सा?
कतमणुस्सा? . . मणुस्सा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - सम्मुच्छिम मणुस्सा य गम्भवतिय मणुस्सा य।
भावार्थ - मनुष्य कितने प्रकार के कहे गये हैं?
मनुष्य दो प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - १. सम्मूर्छिम मनुष्य और २. गर्भव्युत्क्रांतिक (गर्भज) मनुष्य।
विवेचन - मनुष्य के लिये दो शब्दों का प्रयोग होता है। यथा - मणुज (मनुज) और मणुस्स। इनकी व्युत्पत्ति इस प्रकार की है-'मनोर्जातो मनुजः'। मनुरिति मनुष्यस्य संज्ञा। मनोरपत्यानि मनुष्याः '. ___ मनु अर्थात् मनुष्य की संतति को मनुष्य कहते हैं। यह तो व्युत्पत्ति मात्र है। तात्पर्यार्थ तो यह है
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