Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
प्रथम प्रतिपत्ति - गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों का वर्णन
कहना चाहिये। इन जीवों के शरीर की अवगाहनों जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट हजार योजन की है। स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त्त उत्कृष्ट पूर्वकोटि की है। ये मर कर नरक में जाते हैं तो पांचवीं नरक तक जाते हैं। सभी तिर्यंचों और सभी मनुष्यों में भी जाते हैं और सहस्रार देवलोक तक भी जाते हैं। शेष सारा वर्णन जलचरों के समान समझना चाहिये यावत् ये चार गति वाले, चार आगति वाले, प्रत्येक शरीरी और असंख्यात हैं । यह उरपरिसर्पों का वर्णन हुआ।
विवेचन - गर्भज उरपरिसर्प जीवों के भेद प्रज्ञापना सूत्र के अनुसार ही समझने चाहिये किंतु आसालिक नहीं कहना चाहिये क्योंकि आसालिक सम्मूर्च्छिम ही होता है और यहां गर्भज उरपरिसर्पों का वर्णन है । उरपरिसर्पों के २३ द्वारों की प्ररूपणा जलचरों के समान ही है जिन द्वारों में अंतर है वे इस प्रकार हैं
-
+++*****
१. अवगाहना द्वार उरपरिसर्पों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग उत्कृष्ट हजार योजन की है ।
२. स्थिति द्वार - इनकी स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट पूर्व कोटि की है ।
३. उद्वर्तना द्वार - ये जीव मर कर नरक में पांचवीं नरक तक, देवों में सहस्रार देवलोक तक तथा सभी मनुष्यों व सभी तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं।
से किं तं भुयपरिसप्पा ?
भुयपरिसप्पा भेदो तहेव, चत्तारि सरीरगा ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं गाउयपुहुत्तं ठिई जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुव्वकोडी, सेसेसु ठाणेसु जहा उरपरिसप्पा णवरं दोच्चं पुढविं गच्छंति, से तं भुयपरिसप्पा पण्णत्ता, से तं थलयरा ॥ ३९ ॥
-
- भावार्थ- भुजपरिसर्प कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
भुजपरिसर्प के भेद पूर्ववत् समझना चाहिये। इन जीवों के चार शरीर होते हैं। अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट गाऊ पृथुत्व (दो कोस से नौ कोस तक) स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट पूर्व कोटि, शेष स्थानों में उरपरिसर्पों की तरह कह देना चाहिये । विशेषता यह है कि ये दूसरी नरक तक जाते हैं। यह भुजपरिसर्पों का वर्णन हुआ। इस प्रकार स्थलचरों का कथन पूर्ण हुआ । विवेचन- भुजपरिसर्पों के शरीर आदि २३ द्वारों का कथन गर्भज उरपरिसर्पों के समान है। निम्न द्वारों में विशेषता है
-
Jain Education International
८९
१. अवगाहना द्वार - भुजपरिसर्प जीवों के शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट गव्यूत पृथक्त्व (दो कोस से लेकर नौ कोस तक) की होती है ।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org