Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
कि मनुष्य गति नाम कर्म के उदय से जिस जीव ने मनुष्य गति में जन्म लिया है उसको मनुष्य कहते हैं। चार कारणों से जीव मनुष्य गति का आयुष्य बांध कर मनुष्य गति में जन्म लेता है। वे इस प्रकार हैं - १. प्रकृति की भद्रता (सरलता) २. स्वभाव से विनीतता (विनीत) ३. दया और अनुकम्पा के परिणामों वाला ४. भत्सर (ईर्षा) डाह जलन न करने वाला। मनुष्यों के दो भेद हैं -
१. सम्मूर्छिम मनुष्य - बिना माता पिता के उत्पन्न होने वाले अर्थात् स्त्री पुरुष के समागम के बिना ही उत्पन्न होने वाले जीव सम्मूर्च्छिम मनुष्य कहलाते हैं।
२. गर्भज मनुष्य - माता पिता के संयोग से गर्भ द्वारा उत्पन्न होने वाले जीव गर्भज मनुष्य कहलाते हैं।
कहि णं भंते! सम्मुच्छिम मणुस्सा सम्मुच्छंति? गोयमा! अंतो मणुस्सखेत्ते जाव करेंति। तेसि णं भंते! जीवाणं कइ सरीरगा पण्णत्ता? .
गोयमा! तिण्णि सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा - ओरालिए तेयए कम्मए, से तं सम्मुच्छिम मणुस्सा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सम्मूर्छिम मनुष्य कहां सम्मूर्च्छित (उत्पन्न) होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! सम्मूर्छिम मनुष्य, मनुष्य क्षेत्र के अंदर गर्भज मनुष्यों के अशुचि स्थानों में उत्पन्न होते हैं यावत् अंतर्मुहूर्त की आयु में मृत्यु को प्राप्त करते हैं।
प्रश्न - हे भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर कहे गये हैं?
उत्तर - हे गौतम! सम्मूर्छिम मनुष्यों के तीन शरीर कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं - औदारिक, तैजस और कार्मण। यह सम्मूर्छिम मनुष्यों का वर्णन हुआ।
विवेचन - सम्मूर्च्छिम मनुष्यों के विषय में प्रज्ञापना सूत्र में इस प्रकार वर्णन है - प्रश्न - हे भगवन् ! सम्मूर्छिम मनुष्य कहां उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! मनुष्य क्षेत्र के अन्दर ४५ लाख योजन परिमाण क्षेत्र में ढाई द्वीप और समुद्रों में पन्द्रह कर्मभूमियों में, तीस अकर्मभूमियों में एवं ५६ अन्तरद्वीपों में गर्भज मनुष्यों के - १. उच्चारों (विष्ठाओं) में २. प्रस्रवणों (मूत्रों) में ३. कफों में ४. सिंघाण-नाक के मैलों में ५. वमनों में ६. पित्तों में ७. मवादों में ८. रक्तों में ९. शुक्रों-वीर्यों में १०. पहले सूखे हुए शुक्र के पुद्गलों को गीला करने में ११. मरे हुए जीवों के कलेवरों में १२. स्त्री-पुरुष के संयोगों में १३. नगर की गटरों या मोरियों में तथा १४. सभी अशुचि स्थानों में सम्मूर्छिम मनुष्य उत्पन्न होते हैं।
प्रश्न - क्या सम्मूर्छिम मनुष्य अपने को दिखाई देते हैं ?
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