Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम प्रतिपत्ति - पंचेन्द्रिय जीवों का वर्णन
७. लेश्या द्वार - पहली और दूसरी नारकी में एक कापोत लेश्या है। तीसरी नारकी में कापोत और नील लेश्या। चौथी नारकी में एक नील लेश्या। पांचवीं नारकी में नील और कृष्ण लेश्या। छठी नारकी में कृष्ण लेश्या और सातवीं नारकी में परम कृष्ण लेश्या होती है।
८. इन्द्रिय द्वार - नैरयिकों में पांचों इन्द्रियाँ होती है। ९. समुद्घात द्वार - नैरयिकों में चार समुद्घात होते हैं - वेदनीय, कषाय, मारणांतिक और वैक्रिय।
१०. संज्ञी द्वार - नैरयिक जीव संज्ञी भी होते हैं और असंज्ञी भी होते हैं। जो गर्भज जीव मरकर नैरयिक होते हैं वे संज्ञी कहे जाते हैं और जो सम्मूर्छिमों से आकर उत्पन्न होते हैं वे असंज्ञी कहलाते हैं। असंज्ञी जीव पहली नरक-रत्नप्रभा में ही उत्पन्न होते हैं आगे के नरकों में नहीं। कहा भी है -
असण्णी खलु पढमं दोच्चं व सिरीसवा तइय पक्खी। सीहा जंति चउत्थिं उरंगा पुण पंचमि पुढवि॥ छट्टि व इत्थियाओ मच्छा मणुया य सत्तर्मि पुढवि। एसो परमोवाओ बोद्धव्वो नरय पुढवीसु॥
- असंज्ञी जीव पहली नरक तक, सरीसृप दूसरी नरक तक, पक्षी तीसरी नरक तक, सिंह चौथी नरक तक, उरग (सर्प आदि) पांचवीं नरक, स्त्री छठी नरक तक तथा मनुष्य और मच्छ सातवीं नरक तक उत्पन्न होते हैं।
११. वेद द्वार - नैरयिक जीव नपुंसकवेदी होते हैं।
१२. पर्याप्ति द्वार - नैरयिकों में छह पर्याप्तियाँ और छह अपर्याप्तियाँ होती है। __१३. दृष्टि द्वार - नैरयिक जीवों में तीनों दृष्टियाँ पाती है।
१४. दर्शन द्वार - नैरयिकों में दर्शन पावे तीन - १. चक्षुदर्शन २. अचक्षुदर्शन और ३. अवधिदर्शन। . ....
१५. ज्ञान द्वार - नैरयिक जीव ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं। जो ज्ञानी होते हैं वे नियम से तीन ज्ञान वाले होते हैं - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान। जो अज्ञानी होते हैं वे मतिअज्ञानी, श्रुतअज्ञानी और विभंगज्ञानी होते हैं। .
जो नैरयिक असंज्ञी हैं वे अपर्याप्त अवस्था में दो अज्ञान वाले होते हैं क्योंकि असंज्ञी से आकर उत्पन्न होने वाले नैरयिकों में तथाविध बोध की मंदता से अपर्याप्त अवस्था में अव्यक्त अवधि की भी प्राप्ति नहीं होती। पर्याप्त अवस्था में असंज्ञी तीन अज्ञान वाले होते हैं। संज्ञी नैरयिक तो पर्याप्त और अपर्याप्त दोनों अवस्थाओं में तीन अज्ञान वाले ही होते हैं। . १६. योग द्वार - नैरयिक जीवों में तीनों ही योग पाते हैं - १. मन २. वचन और ३. काया।
१७. उपयोग द्वार - नैरयिक जीव साकार और अनाकार दोनों उपयोग वाले हैं उनमें तीन ज्ञान, तीन अज्ञान और तीन दर्शन पाते हैं।
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