Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
____तओ सरीरगा ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं गाउयपहत्तं ठिई जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं चउरासीइ वाससहस्साइं सेसं जहा जलयराणं जाव चउगइया दुआगइया परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता, सेत्तं चउप्पय थलयर संमुच्छिम पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया॥
भावार्थ - चतुष्पद स्थलचर सम्मूर्छिम तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों के तीन शरीर होते हैं। अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग उत्कृष्ट गाऊ पृथक्त्व की, स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट चौरासी हजार वर्ष की होती है। शेष सारा वर्णन जलचरों के समान समझना चाहिये यावत् चार गति में जाने वाले और दो गति से आने वाले, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात कहे गये हैं। यह चतुष्पदं स्थलचर सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का वर्णन हुआ।
विवेचन - चतुष्पद स्थलचरों के २३ द्वारों का वर्णन जलचरों के समान समझना चाहिये, जिन द्वारों में अन्तर है, वे इस प्रकार हैं__ अवगाहना द्वार - इन जीवों के शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट गव्यूति (गाऊ-कोस) पृथक्त्व अर्थात् दो कोस से लेकर अनेक (छह) कोस तक की होती है।
स्थिति द्वार - चतुष्पद स्थलचरों की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट चौरासी हजार वर्ष की है।
से किं तं थलयर परिसप्प संमुच्छिमा?
थलयर परिसप्प संमुच्छिमा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - उरपरिसप्प संमुच्छिमा भुयपरिसप्प संमुच्छिमा। . भावार्थ - प्रश्न - स्थलचर परिसर्प सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीव कितने प्रकार के कहे गये हैं?
उत्तर - स्थलचर परिसर्प सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं वे इस प्रकार हैं - उर:परिसर्प स्थलचर सम्मूर्च्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक और भुजपरिसर्प स्थलचर सम्मूर्च्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक।
विवेचन - 'उरसा परिसर्पन्ति' - 'उरस' का अर्थ है छाती, इसलिये जो छाती के बल से चलते हैं ऐसे सर्प आदि उर:परिसर्प कहलाते हैं। -
'भुजाभ्यां परिसर्पन्ति' - जो भुजाओं के बल से चलते हैं वे भुजपरिसर्प कहलाते हैं। से किं तं उरपरिसप्पसंमुच्छिमा?
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