Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्रः
शेष सारा वर्णन समान हैं यावत् वे दो गति वाले और दो आमति वाले हैं। प्रत्येक शरीरी और असंख्यात हैं। इस प्रकार तेइन्द्रिय जीवों का निरूपण हुआ।
चरिन्द्रिय जीवों का वर्णन 11 साकत चलगिदिया? TER IMPOPTERISTICERTAIN RATHOSE ORIES
चउरिदिया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा.- अंधिया पोतिया जाव गोमयकीडा, जे यावरणे तहप्पगारा ते समासओ, दुविहा पण्णत्ता तं जहा पन्जना य अपज्जत्ता अगला ... TOP S FRE
E R IFE INFESE रिकार, भावार्थ - चउरिन्द्रिय जीवों का क्या स्वरूप हैं ?
उरिन्द्रिय, जीव अनेक प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं। अंधिक, पुत्रिक यावत् गोमयकीट और इसी प्रकार के अन्य जीव चडरिन्द्रिय हैं। चउरिन्द्रिय जीव दो प्रकार के कहे साये हैं - का प्रयाप्तक और अपर्याप्त कला (FE) महान महान ..SEE STEPS का कालाववचन चाहिरानय जीव अनेक प्रकार के कहे गये हैं। प्रापना सूत्र में चाउरिन्द्रिय जीवों के नाम इस प्रकार दिये हैं - अधिक, पौत्रिक (नैत्रिक) मक्खी, मशक (मच्छर), कोट (रिडी), पतंग ढिकुण कक्कड, कुक्कुह, नंदावत, श्रगिरिट, कृष्णपत्रं, नीलपत्र, लोहितपत्र, हरित पत्र शुक्ल पत्र चित्र यक्ष, विचित्र पक्ष, ओभजलिका, जलचारिक गंभीर, नीनिक, तंतव, अक्षिरोट, अक्षिवेध. सारंग, नेवल, दोला, भ्रमर, भरिली, जरुला, तोट्ट, बिच्छू, पत्रवृश्चिक, छाणवृश्चिक, जलवृश्चिक, प्रियंगाल, कनक और गोमयकीट। इन चउरिन्द्रिय जीवों के भेदों में कुछ तो प्रसिद्ध है ही। शेष देश विशेष या,सम्प्रदाय सजानने चाहिये। इसी प्रकार का अन्य प्राणायाँ चितुरिन्द्रिय समझने चाहिये। इसके पर्याप्त और श्राप्तिये दो श्रेषका
तेसिणं भंते जीवापसगासपणना फांसमोयमा तो ससाणा अपातक तंवणवरासरीसेवाहणारबकोमेजावत्तारि पाउमाई, दिपा वित्तावि, चक्कुर्वसणी, अबक्खुदसणी दिई उक्कासी छम्माँसा सेंस महासदियाणांजावाअसंखेज्जी पण्णता से विचारदिया। ७॥
भावार्थ प्रश्न है भगवा बाजीवों के कितने शरीर कहे गये हैं। -- उत्तराहे गौतम डम जीवो कैप्तिीम शेरीर कहे गये हैं। इस प्रकार पूर्ववत् कहना चाहिये। विशेषता यह है कि उनके शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना चार कोस की है, उसकाचार हान्द्रयां हैं। वे चक्षुदर्शनी और अचक्षुदर्शनी हैं। उनकी स्थिति उत्कृष्ट छह मास की है शेषवर्णमन्द्रिय जीवों की तरह समझना चाहियेंच्यावत् के असंख्यातक्ररूषके हैं। यह परिन्द्रिय जीवों का निस्सफीही
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