Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
८. इन्द्रिय द्वार - बेइन्द्रिय जीवों के दो इन्द्रियां हैं - १. स्पर्शनेन्द्रिय और २. रसनेन्द्रिय। ९. समुद्घात द्वार - इनमें तीन समुद्घात पाते हैं - १. वेदनीय २. कषाय और ३. मारणांतिक। . १०. संज्ञी द्वार - ये जीव असंज्ञी होते हैं, संज्ञी नहीं। ११. वेद द्वार - ये जीव नपुंसक वेदी होते हैं।
१२. पर्याप्ति द्वार - बेइन्द्रिय जीवों में पांच पर्याप्तियाँ, पर्याप्त जीवों की अपेक्षा और पांच अपर्याप्तियाँ, अपर्याप्त जीवों की अपेक्षा होती हैं।
१३. दृष्टि द्वार - बेइन्द्रिय जीव सम्यग्दृष्टि भी होते हैं, मिथ्यादृष्टि भी होते हैं किंतु मिश्रदृष्टि नहीं होते। सास्वादन सम्यक्त्व वाले कुछ जीव मर कर बेइन्द्रिय में उत्पन्न होते हैं इस अपेक्षा. से अपर्याप्त अवस्था में थोड़े समय के लिये सास्वादन सम्यक्त्व संभव होने से वे सम्यग्दृष्टि कहे जाते हैं। शेष समय में बेइन्द्रिय जीव मिथ्यादृष्टि ही होते हैं। भव स्वभाव के कारण उनमें मिश्रदृष्टि नहीं पाई जाती है और कोई मिश्रदृष्टि वाला जीव भी बेइन्द्रिय में उत्पन्न नहीं होता है। क्योंकि आगम में कहा है कि 'ण सम्ममिच्छो कुणइ कालं' - मिश्रदृष्टि वाला जीव उस स्थिति में नहीं मरता है।
१४. दर्शन द्वार - बेइन्द्रिय जीवों में एक अचक्षुदर्शन ही पाता है, चक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन नहीं पाता है। .
१५. ज्ञान द्वार - बेइन्द्रिय जीव ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। सास्वादन सम्यक्त्व की अपेक्षा ये ज्ञानी हैं। इनमें मतिज्ञान और श्रुतज्ञान पाता है। मिथ्यादृष्टित्व की अपेक्षा ये अज्ञानी हैं। ये मति अज्ञानी और श्रुत अज्ञानी है।
१५. योग द्वार - ये मनोयोगी नहीं है। वचनयोगी और काययोगी है। १७. उपयोग तार - ये साकार उपयोग वाले भी हैं और अनाकार उपयोग वाले भी हैं।
१८. आहार बार - बेइन्द्रिय जीव त्रस नाडी में ही होते है, अतएव कोई व्यापात नहीं होता निपात की अपेक्षा वे निपमा छहों दिशाओं के पुद्गलों का आहार करते है।
१९. स्पपात बार-बान्द्रिय जीव देव, नैरपिक और असंख्यात वर्षापुक तिपंचों भौर मनुष्यों कोबकर शेष तिची और मनुष्यों में भाकर उत्पन्न होते है।
२०. स्थितिमार-मजोषों की स्थिति जपन्य भारत उत्तरवाहवर्ष की होती है। २१. समबहतार-पे समबहत होकर भी मरते है और भसमबहत होकर भी मरते है।
२२. च्यवन द्वार - यै जीव मर कर देव, नैरयिक और असंख्यात वर्षों की आयु वाले तिर्यंचों मनुष्यों को छोड़ कर शेष तिर्यंचों मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं।
२३. गति आगति द्वार - बेइन्द्रिय जीव दो गति (मनुष्य तिर्यंच) में जाते हैं और दो गति से आते हैं।
बेइन्द्रिय जीव प्रत्येक शरीरी और असंख्यात हैं। इस प्रकार बेइन्द्रिय जीवों का वर्णन पूरा हुआ।
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