Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम प्रतिपत्ति - वायुकायिक जीवों का वर्णन
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सुद्धागणि (शुद्धाग्नि)- लोह पिण्ड आदि में प्रविष्ट अग्नि, शुद्धाग्नि है। उक्का (उल्का)- रेखा सहित विद्युत्। ' विज्जू (विद्युत्)- आकाश में चमकने वाली बिजली और कृत्रिम बिजली। असणी (अशनि)- विद्युत् रहित अग्नि। णिग्याए (निर्घात)- कड़क युक्त विद्युत्। .
संघरिस समुट्ठिए (संघर्ष समुत्थित) - अरणि काष्ठ की रगड़ से या अन्य रगड़ से उत्पन्न हुई अग्नि और भी इसी प्रकार की अग्नियां बादर तेजस्कायिक हैं।
तेसि णं भंते! जीवाणं कइ सरीरगा पण्णत्ता?
गोयमा! तओ सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा - ओरालिए, तेयए, कम्मए, सेसं तं चेव, सरीरगा सूइकलावसंठिया, तिण्णि लेस्सा, ठिई जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिण्णि राइंदियाई, तिरियमणुस्सेहिंतो उववाओ, सेसं तं चेव एगगइया दुआगइया, परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता, सेत्तं तेउक्काइया॥२५॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! उन तेजस्कायिकों के कितने शरीर कहे गये हैं ?
उत्तर - हे गौतम! उनके तीन शरीर कहे गये हैं। यथा - औदारिक, तैजस, कार्मण। शेष बादर पृथ्वीकायिकों की तरह समझना चाहिये। विशेषता यह है कि उनके शरीर का संस्थान सूइयों के समुदाय का है। उनमें तीन लेश्याएं हैं। उनकी स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट तीन रात-दिन की है। तिथंच गति और मनुष्य गति से वे आते हैं किंतु एक तिर्यंच गति में ही जाते हैं। वे प्रत्येक शरीर वाले
और असंख्यात हैं। यह तेजस्कायिकों का वर्णन पूरा हुआ। ..विवेचन - बांदरं तेजस्कायिकों के शरीर आदि २३ द्वारों की विचारणा सूक्ष्म तेजस्कायिकों की तरह ही समझना चाहिये। विशेषता यह है कि इनकी स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन दिन रात की है। आहार बादर पृथ्वीकायिकों की तरह समझ लेना चाहिये।
. वायुकायिक जीवों का वर्णन से किं तं वाउक्काइया?
वाउक्काइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - सुहम वाउक्काइया य बायर वाउक्काइया य, सुहुम वाउक्काइया जहा तेउकाइया णवरं सरीरा पडागसंठिया एगगइया दुआगइया परित्ता असंखिज्जा, सेत्तं सुहम वाउक्काइया।
कठिन शब्दार्थ - पडागसंठिया - पताका संस्थान वाले।
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