Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन हजार वर्ष की है। शेष पूर्ववत् समझना चाहिये। वे एकगतिक और दो आगतिक होते हैं। वे प्रत्येक शरीरी और असंख्यात हैं। हे आयुष्मन् श्रमण! यह बादर वायुकायिक का कथन हुआ। इस प्रकार वायुकायिक का निरूपण पूर्ण हुआ।
विवेचन - शरीर आदि २३ द्वारों की विचारणा में बादर वायुकायिक के औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण ये चार शरीर होते हैं। इनके शरीर का संस्थान पताका के जैसा होता है। इनके चार समुद्घात होते हैं - वेदनीय समुद्घात, कषाय समुद्घात, मारणांतिक समुद्घात और वैक्रिय समुद्घात। बादर वायुकायिक जीवों का आहार व्याघात के अभाव में छहों दिशाओं में से आगत पुद्गल द्रव्यों का होता है क्योंकि ये लोक के मध्य में स्थित होते हैं। जब व्याघात होता है उस समय इनका आहार कदाचित् तीन दिशाओं से, कदाचित् चार दिशाओं से और कदाचित् पांच दिशाओं से आगत पुद्गल द्रव्यों का होता है। वहां व्याघात लोक निष्कुट रूप ही है। क्योंकि बादर वायुकायिक लोक निष्कुट : आदि में भी पाये जाते हैं। इनका उपपात देव, मनुष्य और नैरयिक में नहीं होता, केवल तिर्यंच गति में ही होता है। बादर वायुकायिक जीवों की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन हजार वर्षों की होती है। शरीर, संस्थान, समुद्घात, आहार, उत्पाद, स्थिति इनके सिवाय शेष द्वारों का कथन सूक्ष्म . वायुकायिकों के समान ही है। ये एक गतिक और दो आगतिक होते हैं क्योंकि ये तिर्यंच गति में ही जाते हैं और तिर्यंच गति और मनुष्य गति से आकर ही जन्म धारण करते हैं। हे आयुष्मन् श्रमण! प्रत्येक शरीरी बादर वायुकायिक असंख्यात हैं। इस प्रकार बादर वायुकायिक का निरूपण हुआ। इस के साथ ही वायुकायिक का वर्णन पूरा हुआ।
औदारिक त्रस के भेद से किं तं ओराला तसा पाणा?
ओराला तसा पाणा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा - बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिदिया पंचेंदिया॥२७॥
भावार्थ- औदारिक त्रस प्राणी का क्या स्वरूप है ? '
औदारिक त्रस प्राणी चार प्रकार के कहे गये हैं, वे इस प्रकार हैं - बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय।
विवेचन - जिन जीवों के त्रस नाम कर्म का उदय हो वे त्रस कहलाते हैं। औदारिक का अर्थ हैस्थूल, प्रधान। मुख्य रूप से बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीव ही त्रस कहलाते हैं अतः उनके लिये औदारिक त्रस कहा गया है। तेजस्काय और वायुकाय गति त्रस कहलाते हैं। उनसे
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