Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
भावार्थ - सूक्ष्म तेजस्कायिकों का क्या स्वरूप है ?
सूक्ष्म तेजस्कायिकों का वर्णन सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों के वर्णन के समान समझना चाहिये। विशेषता यह है कि इनके शरीर का संस्थान सूचि कलाप - सूइयों के समुदाय के आकार का समझना चाहिये। ये जीव एक तिर्यंच गति में ही जाते हैं और तिर्यंच एवं मनुष्य इन दो गतियों से आते हैं। ये जीव प्रत्येक शरीर वाले और असंख्यात हैं। शेष सारा कथन पूर्ववत् (सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों जैसा) है। इस प्रकार सूक्ष्म तेजस्कायिकों का वर्णन हुआ।
विवेचन - सूक्ष्म तेजस्कायिकों के विषय में २३ द्वारों की विचारणा में सब कथन सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों के समान समझना चाहिये। जो अन्तर है वह इस प्रकार हैं- सूक्ष्म तेजस्कायिकों का शरीर संस्थान सूइयों के समुदाय के समान है। सूक्ष्म तेजस्कायिक मर कर तिर्यच गति में ही उत्पन्न होते हैं, मनुष्य गति में उत्पन्न नहीं होते। सूक्ष्म तेजस्कायिक तियंच गति में जाते हैं और तियंच गति और मनुष्य गति से आकर उत्पन्न होते हैं अतः इन्हें एक गति वाले और दो आगति वाले कहे गये हैं। इस प्रकार सूक्ष्म तेजस्कायिकों का कथन हुआ ।
से किं तं बायर उक्काइया ?
बायर तेडक्काइया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा - इंगाले जाले मुम्मुरे जाव सूरकंतमणिणिस्सिए, जे यावणे तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य ॥
कठिन शब्दार्थ - इंगाले - इंगाल- धूम से रहित, जाज्वल्यमान खैर आदि की अग्नि, जाले - ज्वाला-अग्नि से संबद्ध लपटें या दीपशिखा, मुम्मुरे मुर्मुर - भोंभर - भस्म मिश्रित अग्नि कण, सूरकंतमणिणिस्सिए - सूर्यकान्तमणि निसृत सूर्यकांत मणि से निकली हुई अग्नि ।
भावार्थ - बादर तेजस्कायिकों का क्या स्वरूप है ?
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बादर तेजस्कायिक अनेक प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं- इंगाल- कोयले की अग्नि, ज्वाला, मुर्मुर की अग्नि यावत् सूर्यकांत मणि से निकली हुई अग्नि और अन्य भी इसी प्रकार की अग्नि । ये बादर तेजस्कायिक संक्षेप से दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा पर्याप्तक और अपर्याप्तक ।
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विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बादर तेजस्कायिक के अनेक भेद बताये गये हैं। यावत् शब्द से अर्चि, अलात, शुद्धाग्नि, उल्का, विद्युत, अशनि, निर्घात, संघर्ष समुत्थित का ग्रहण किया गया है। इनके अर्थ इस प्रकार हैं
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अच्ची (अर्चि ) - मूल अग्नि से असंबद्ध ज्वाला ।
अलाए (अलात) - किसी काष्ठखंड में अग्नि लगा कर उसे चारों तरफ फिराने पर जो गोल चक्कर सा प्रतीत होता है वह अलात है ।
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