Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सत्र
आंवला, पनस, दाडिम, न्यग्रोध, कादुम्बर, तिलक, लकुच (लवक) लोध्र, धव और अन्य भी इसी प्रकार के वृक्ष। इनके मूल असंख्यात जीव वाले यावत् फल बहुबीज वाले हैं। यह बहुबीज वाले वृक्ष का वर्णन हुआ। इसके साथ ही वृक्ष का निरूपण पूर्ण हुआ। इस प्रकार जैसा प्रज्ञापना सूत्र में कहा गया है वैसा ही यहाँ भी कह देना चाहिए यावत् इस प्रकार के वृक्ष से लेकर कुहण तक।
गाथाओं के अर्थ - वृक्षों के संस्थान नाना प्रकार के हैं। ताल, सरल और नालिकेर वृक्षों के पत्ते और स्कन्ध एक-एक जीव वाले होते हैं।
जैसे श्लेष (चिकने) द्रव्य से मिश्रित किये हुए अखण्ड सरसों की बनाई हुई बट्टी एक रूप होती है किन्तु उसमें वे दाने अलग-अलग होते हैं। उसी प्रकार प्रत्येक शरीर वालों के शरीर संघात होते हैं। जैसे तिलपपड़ी में बहुत सारे अलग-अलग तिल मिले हुए होते हैं उसी प्रकार प्रत्येक शरीरी जीवों के शरीर संघात अलग-अलग होते हुए भी समुदाय रूप होते हैं। यह प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक का निरूपण हुआ।
विवेचन - वृक्ष दो प्रकार के कहे गये हैं - १. एकास्थिक-जिसके प्रत्येक फल में एक गुठली या बीज हो वह एकास्थिक है २. बहुबीजक - जिनके फल में बहुत बीज हो। ' .
एकास्थिक वृक्षों के कुछ नाम मूलपाठ में दिये हैं। प्रज्ञापना सूत्र प्रथम पद में एकास्थिक वृक्षों के नाम इस प्रकार दिये हैं - नीम, आम, जामुन, कोशम्ब, साल, अंकोल्ल (अखरोट या पिस्ते का पेड) पीलु, शेलु (लसोड़ा), सल्लकी, मोनकी, मालुक, बकुल पलाश (ढाक), करंज। पुत्रजीवक, अरिष्ठ (अरीठा) विभीतक (बहेडा) हरड, भल्लातक (भिलावा) उम्बेभरिया, खिरनी, धातकी और प्रियाल। पूतिक (निम्ब) करंज, श्लक्ष्ण, शिंशपा, अशन, पुन्नाग (नागकेसर) नागवृक्ष, श्रीपर्णी और अशोक ये सब एकास्थिक वृक्ष हैं। इसी प्रकार के अन्य जितने भी वृक्ष हैं जिनके फल में एक ही गुठली (बीज) हो, वे सब एकास्थिक समझने चाहिये।
प्रज्ञापना सूत्र में बहुबीजक वृक्षों के नाम इस प्रकार दिये हैं - अस्थिक, तिंदुक, कबीठ, अम्बाडग, मातुलिंग (बिजौरा) बिल्व, आमलक, पनस (अनन्नास) दाडिम, अश्वस्थ (पीपल) उदुम्बर (गूलर) वट (बड) न्यग्रोध (बडा वट)। नन्दिवृक्ष, पिप्पली, शतरी, प्लक्ष, कादुम्बरी, कस्तुम्भरी देवदाली, तिलक, लवक (लकुच-लीची) छत्रोपक, शिरीष, सप्तपर्ण, दधिपर्ण, लोध्र, धव, चन्दन, अर्जुन, नीप, कुरज (कुटक) और कदम्ब, इसी प्रकार के अन्य जितने भी वृक्ष हैं जिनके फल में बहुत बीज हैं वे सब बहुबीजक समझने चाहिये।
_ एकास्थिक वृक्षों के मूल असंख्यात जीवों वाले होते हैं। इनके कन्द, स्कन्ध, त्वचा (छाल) शाखा और प्रवाल (कोंपल) भी असंख्यात जीवों वाले होते हैं किन्तु इनके पत्ते प्रत्येक जीव (एक पते में एक जीव) वाले होते हैं। इनके फूलों में अनेक जीव होते हैं, इनके फलों में एक गुठली होती है।
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