Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम प्रतिपत्ति - वनस्पतिकायिक जीवों का वर्णन
विवेचन - हरितकाय, तृण, वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता आदि वनस्पति है। वनस्पति ही जिन जीवों का शरीर है ३वनस्पतिकायिक कहलाते हैं। जिन वनस्पतिकायिक जीवों के सूक्ष्म नाम कर्म का उदय है वे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक कहलाते हैं और जिन वनस्पतिकायिक जीवों के बादर नाम कर्म का उदय होता है वे बादर वनस्पतिकायिक कहलाते हैं।
से किं तं सुहुम वणस्सइकाइया?
सुहम वणस्सइकाइया दुविहा पण्णत्ता। तंजहा-पजत्तगा य अपजत्तगा य तहेव णवरं अणित्थंथ (संठाण) संठिया, दुगइया दुआगइया अपरित्ता अणंता, अवसेसं जहा पुढविक्काइयाणं, से त्तं सुहुम वणस्सइकाइया॥१८॥
कठिन शब्दार्थ - अणित्यंथ (संठाण) संठिया - अनित्थंस्थ (अनियत) संस्थान संस्थित। भावार्थ - सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीवों का स्वरूप क्या है?
सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा -- पर्याप्तक अपर्याप्तक इत्यादि वर्णन सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों के समान जानना चाहिये। विशेषता यह है कि सूक्ष्म वनस्पतिकायिकों का संस्थान अनित्थंस्थ (अनियत) है। वे जीव दो गतियों में जाने वाले और दो गतियों से आने वाले हैं। वे अपरित्त (अनन्तकायिक) और अनन्त हैं। हे आयुष्मन श्रमण! यह सूक्ष्म वनस्पतिकायिक का वर्णन हुआ।
विवेचन - सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीवों का संस्थान अनित्थंस्थ होता है अर्थात् इनके शरीर का नियत संस्थान नहीं होता है, अनियत आकार वाले उनके शरीर होते हैं। संस्थान द्वार के अलावा शेष द्वारों का वर्णन सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों के समान ही है। सूक्ष्म वनस्पतिकायिक से मर कर जीव तिर्यंच और मनुष्य इन दो गति में ही उत्पन्न होते हैं अतः ये द्विगतिक हैं तथा सूक्ष्म वनस्पतिकायिकों में तिर्यंच और मनुष्य गति से आये हुए जीव ही उत्पन्न होते हैं अतः ये दो आगति वाले होते हैं। ये अप्रत्येक शरीरी हैं अतः इन्हें अनन्त कहा गया है। शेष सारी वक्तव्यता सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों के समान कह देनी चाहिए। इस प्रकार सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीवों का तेइस द्वारों से वर्णन हुआ।
से किं तं बायरवणस्सइकाइया?
बायर वणस्सइकाइया दुविहा पण्णत्ता, तंजहा - पत्तेयसरीर बायरवणस्सइकाइया य साहारण सरीर बायर वणस्सइकाइया य॥१९॥ . भावार्थ - बादर वनस्पतिकायिक का स्वरूप क्या है?
बादर वनस्पतिकायिक दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - १. प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक और २. साधारण शरीर बादर वनस्पतिकायिक।
विवेचन - बादर वनस्पतिकायिक जीवों के दो भेद कहे गये हैं - १. प्रत्येक शरीरी और
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