Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
पर्याप्ति ३. इन्द्रिय पर्याप्ति ४. श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति ५. भाषा पर्याप्ति और ६. मनःपर्याप्ति । छहों पर्याप्तियों का विशद वर्णन पूर्व में किया जा चुका है।
सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों में आहार, शरीर, इन्द्रिय और श्वासोच्छ्वास ये चार पर्याप्तियाँ और ये चार ही अपर्याप्तियाँ पाई जाती है।
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१३. दृष्टि द्वार
ते णं भंते! जीवा किं सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी ?
गोयमा ! णो सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, णो सम्मामिच्छादिट्ठी ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! वे जीव क्या सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं या सम्यग् - मिथ्यादृष्टि (मिश्र दृष्टि ) हैं ?
उत्तर - हे गौतम! वे जीव सम्यग् दृष्टि नहीं हैं, मिथ्यादृष्टि हैं, सम्यग् - मिथ्यादृष्टि (मिश्र दृष्टि ) भी नहीं है।
विवेचन - तत्त्व विचारणा की रुचि को 'दृष्टि' कहते हैं। दर्शन मोह के उदय, क्षयोपशम, क्षय आदि के द्वारा " अतत्त्व में तत्त्वबुद्धि" अर्थात् अयथार्थ दर्शन, मिश्र दर्शन एवं क्षयोपशम आदि जन्य यथार्थ दर्शन को दृष्टि कहते हैं। इसके तीन भेद हैं १. सम्यग् - दृष्टि २. मिथ्या-दृष्टि और ३. सम्यग्मिथ्यादृष्टि (मिश्र दृष्टि ) ।
१. सम्यग्दृष्टि - जिसको दर्शन मोहनीय कर्म का उपशम, क्षय या क्षयोपशम होने पर जीवादि तत्त्वों की यथार्थ श्रद्धा उत्पन्न होती है, उसे 'सम्यग्दृष्टि' कहते हैं।
२. मिथ्यादृष्टि - जिस जीव को दर्शन मोहनीय कर्म के उदय से जीवादि तत्त्वों की विपरीत श्रद्धा होती है, उसे मिथ्यादृष्टि कहते हैं ।
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३. सम्यग्मिथ्यादृष्टि (मिश्रदृष्टि ) - मिश्र मोहनीय कर्म के उदय से कुछ सम्यक् और कुछ मिथ्यात्व रूप मिश्रित परिणाम होता है, उसे सम्यग् मिथ्यादृष्टि (मिश्र दृष्टि) कहते हैं। शक्कर मिले हुए दही के खाने से जैसे खटमीठा मिश्र रूप स्वाद आता है वैसे ही सम्यक्त्व और मिथ्यात्व दोनों से मिला हुआ परिणाम होता है, उसे 'सम्यग् मिथ्यादृष्टि' कहते हैं ।
सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों में इन तीन दृष्टियों में से केवल एक मिथ्यादृष्टि ही पाई जाती है। सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव सम्यग्दृष्टि भी नहीं होते हैं और मिश्रदृष्टि भी नहीं होते हैं।
१४. दर्शन द्वार
ते णं भंते! जीवा किं चक्खुदंसणी अचक्खुदंसणी ओहिदंसणी केवलदंसणी ? गोयमा ! णो चक्खुदंसणी, अचक्खुदंसणी, णो ओहिदंसणी णो केवलदंसणी ॥
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