Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
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पिपंचवण्णाई पि आहारेंति, विहाणमग्गणं पडुच्च कालाइंपि आहारेंति जाव सुक्किलाई पि आहारेंति।
जाई वण्णओ कालाई आहारेंति ताई किं एगगुणकालाई आहारेंति जाव अणंतगुणकालाई आहारेंति?
गोयमा! एगगुणकालाई पि आहारेंति जाव अणंतगुणकालाई पि आहारेंति जाव सुक्किल्लाइं॥
‘कठिन शब्दार्थ - ठाणमग्गणं - स्थान मार्गणा, पडुच्च - अपेक्षा, विहाणमग्गणं - विधान (भेद) मार्गणा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! भाव से जिन वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं वे क्या एक वर्ण वाले, दो वर्ण वाले, तीन वर्ण वाले, चार वर्ण वाले अथवा पांच वर्ण वाले होते हैं। ..
उत्तर - हे गौतम! स्थान मार्गणा की अपेक्षा एक वर्ण वाले, दो वर्ण वाले, तीन वर्ण वाले, चार . वर्ण वाले और पांच वर्ण वाले पुद्गलों का भी आहार करते हैं। भेद मार्गणा की अपेक्षा काले पुद्गलों का भी आहार करते हैं यावत् शुक्ल वर्ण के पुद्गलों का भी आहार करते हैं।
प्रश्न - हे भगवन्! वर्ण से जिन काले पुद्गलों का आहार करते हैं वे क्या एक गुण काले हैं यावत् अनन्त गुण काले हैं?
उत्तर - हे गौतम! एक गुण काले पुद्गलों का भी आहार करते हैं यावत् अनन्तगुण काले पुद्गलों का भी आहार करते हैं। इसी प्रकार यावत् शुक्ल वर्ण तक समझ लेना चाहिये।
जाई भावओ गंधमंताई आहारेंति ताइं किं एगगंधाइं आहारैति दुगंधाई आहारेंति?
गोयमा! ठाणमग्गणं पडुच्च एगगंधाई पि आहारेंति दुगंधाई पि आहारैति, विहाणमग्गणं पडुच्च सुब्भि गंधाई पि आहारेंति दुब्भि गंधाइं पि आहारैति।
जाई गंधओ सुब्भिगंधाइं आहारेंति ताई किं एगगुणसुब्भि गंधाई आहारेंति जाव अणंतगुण सुब्भिगंधाई आहारेंति?
गोयमा! एगगुण सुब्भिगंधाई पि आह्मरेंति जाव अणंतगुण सुब्भिगंधाई पि आहारेंति, एवं दुब्भिगंधाइं पि॥रसा जहा वण्णा॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! भाव से जिन गंध पुद्गलों का आहार करते हैं क्या वे एक गंध वाले पुद्गलों का आहार करते हैं या दो गंध वाले पुद्गलों का आहार करते हैं ? .
उत्तर - हे गौतम! स्थान मार्गणा की अपेक्षा एक गंध वाले पुद्गलों का भी आहार करते हैं और
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