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के भी समर्थक है कि उस दिन दोपहर बारह बजे जहाँ कही भी प्राचार्य श्री पहुँच जाएँ वही महोत्सव का कार्यक्रम सम्पन्न कर आगे विहार कर देना चाहिए | सभी विकल्पो के सामने कुछ-कुछ कठिनाइयाँ हैं । देखे कौन-सा स्थल इस महापर्व के गौरव से अपने आपको अभिमंडित कर पाएगा ।
रात में धर्मशाला में ठहरे थे । धर्मशाला की कोठरियाँ छोटी-छोटी तो होती ही हैं । अत सारे साधु एक स्थान पर नही सो सके । आचार्यश्री ! का विचार था कि पिछली रात्री मे सारे साधु एकत्र हो जाए पर हमारे लिए स्थान तो नही बनाया जाता ? साधु को तो जैसी सुविधा हो वैसा ही होकर चलना पडता है ।