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शास्त्री आदि-आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय है । पडित महेन्द्रकुमारजी का निधन आज जरूर खटक रहा था। पिछली बार जब आचार्यश्री यहाँ पधारे थे तो उन्होने आगे होकर सारे कार्यक्रमो का सयोजन किया था । पर अब तो वे विगत के अतिथि हो चुके थे । सचमुच काशी की विद्वन्मण्डली मे उनका अपना विशेष स्थान था । यहाँ चोरडिया बन्धुओ का सहयोग भी विशेष सराहनीय था ।
प्रार्थना के बाद एक छोटा-सा भाषरणो का कार्यक्रम रखा गया । क्योकि बडा कार्यक्रम करने का तो आचार्यश्री ने पहले ही निषेध कर दिया था। अभी तो यहाँ रास्ते चलते ही आये हैं । प्रात काल पुन विहार करना है अत सभी लोगो को सूचना भी नही दी गई थी । यहाँ के लोगो का बहुत आग्रह था कि कुछ दिन तो यहाँ ठहरना ही चाहिए । पर श्राचार्यश्री को अभी तक बहुत दूर चलना है । अत अभी कैसे ठहर सकते हैं ? अभी तो वनारस और औरई सभी समान है । वल्कि आचार्यश्री का तो यह भी विचार था कि बनारस ठहरा ही नही जाय । पर लोगो के अत्यन्त आग्रह से रात-रात का निवास यहाँ स्वीकार किया गया । विद्वानो ने आचार्यश्री का श्रद्धासिक्त स्वरो मे अभिनन्दन किया तथा आचार्यश्री ने यहाँ से चलकर पुन यहाँ आने तक के अपने विशेष अनुभव सुनाये । रात्री मे वहुत देर तक साधकजी तथा सतीशकुमार से बातें होती रही ।
यहाँ हासी निवासियो का एक शिष्टमण्डल मर्यादा महोत्सव की प्रार्थना करने के लिए आया था । श्राचार्यश्री ने उनकी प्रार्थना को ध्यानपूर्वक सुना पर अभी महोत्सव का निर्णय कर देना जरा कठिन - सा लगता था । महोत्सव के बारे मे इस बार अनेक कल्पनाएँ है । कुछ लोगो का विचार है कि महोत्सव सरदारशहर मंत्री मुनि के पास ही करना चाहिए । कुछ लोगो की राय है कि रास्ते मे जहाँ कही भी माघ शुक्ला सप्तमी आ जावे वही महोत्सब कर देना चाहिए । बल्कि कुछ लोग तो इस बात