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भी निराश और दीन नहीं होना चाहिए । तुम्हे अपने देश से दूर राजस्थान की गौरवमयी मर्यादा की रक्षा करनी है । आशा है तुम अपने शील और स्वभाव से दूसरे लोगो मे राजस्थान के प्रति स्वस्थ-भावनाए अजित करोगे। ___ आचार्यश्री मुगलसराय मे आकर ठहरे ही थे कि एक रेलवे आफिसर आये और कहने लगे-मैंने कानपुर मे आपके दर्शन किए थे। प्रवचन भी सुना था। आज जब इधर से जाती हुई कारो पर आपका नाम पढा तो मैंने लोगो से पूछा-आचार्य जी कहाँ है ? उन्होने बताया कि आप यही हैं । मुझे यह सुनकर बडी खुशी हुई । सचमुच आज का दिन हमारे लिए बड़े ही सौभाग्य का दिन है। पर आप यहाँ आये इसका प्रचार तो हुआ ही नही । यहाँ लाखो लोग बसते हैं उन्हे पता चल जाता तो वे भी आपके उपदेश से लाभ कमा सकते। ___ आचार्यश्री-"हाँ यह तो ठीक था पर आज सुगनचन्दजी ने हमारे पर अनुकम्पा करके यहां ठहराया है । कल ही साहूपुरी से वहाँ के मैनेजर आए थे उन्होने हमे साहूपुरी मे ठहरने का काफी आग्रह किया था। पजाब नेशनल बैंक मे भी हम ठहर सकते थे और भी अनेक स्थान हमे बाजार मे मिल सकते थे। पर सुगनचन्दजी की इच्छा थी कि आज तो हमे एकान्त मे ठहर कर कुछ विश्राम ही करना चाहिए। इसीलिए उन्होंने हमारे यहां आने का प्रचार नही किया। यद्यपि हमारे लिए तो लोगो से मिलना ही विश्राम है पर सुगनचन्दजी की भावना ने आज विजय पा ली और हमे एकान्त मे सडक से दूर ही ठहरना पडा।"
मैनेजर-अच्छा ! आज तो आप यही ठहरेंगे? आचार्यश्री-नही । हमे आज शाम को ही वनारस पहुँच जाना है।
मैनेजर-हाँ तो मैं अभी आपके लिए ट्रेन की व्यवस्था करवा देता हूँ।