Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur
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जयपुर (खानिया ) तत्त्वचर्चा अब उक्त कथनके अनुसार कार्यकारणभावका वास्तविक आधार क्या है ? इसपर थोड़ा विचार कर लेना आवश्यक जान पड़ता है।
मिट्टी घटका कारण है---इस वाक्यका अर्थ यह नहीं समझना चाहिए कि मिट्टीरूप पर्यायशक्ति
ष्ट पदगलरूप ध्यशक्ति घटका कारण है किन्तु उक्त वाक्यका यही अर्थ समझना चाहिये कि स्थल पर्यायोंको अपेक्षा घटरूप कार्याव्यवहित पूर्ववर्ती कुशूल पर्यायशक्तिसे विशिष्ट तथा क्षणिक पर्यायोंकी अपेक्षा घटरूप कार्याव्यवहित पूर्व क्षणवर्ती पर्यायशक्तिसे विशिष्ट मिट्टीरूप द्रव्यशक्ति घटका कारण है। इसी प्रकार गेहूँ गेहूंकी अंकुरोल्पत्तिमें कारण है-इस वाक्यका यह अर्थ नहीं समझना चाहिये कि गेहूँरूप पर्यायशक्ति विशिष्ट पुद्गलरूप द्रव्यशक्ति गेहूँको अंकुरोत्पत्तिमें कारण है, किन्तु उक्त वावयका यही अर्थ समझना चाहिये कि स्थूल पर्यायोंकी अपेक्षा गेहूँकी अंकुरोत्पत्तिरूप कार्याव्यवहित पूर्ववर्ती खेल में बपनरूप पर्यायशक्तिविशिष्ट तथा क्षणिक पनि अगेमा की कुरोधा कार्याध्यानदिन पूर्व क्षणवर्ती पर्यायशक्ति विशिष्ट गेहुँरूप द्रव्यशक्ति ही गेहूँकी अंकुरोत्पत्तिमें कारण है।
इसका कारण यह है कि घटरूप कार्यके उत्पन्न होने में मिट्टी पुद्गलद्रव्यको पर्यायरूपसे कारण नहीं बन रही है, किन्तु स्वयं एक पौद्गलिक द्रव्यरूपसे ही बन रही है। इसी प्रकार गेहूँकी अंकुरीत्पत्तिरूप कार्यके उत्पन्न होने में गेहूँ मी पुद्गल द्रव्यको पर्यायरूपसे कारण नहीं बन रहा है, किन्तु स्वयं एक पोद्गलिक दृश्यरूप से हो कारण बन रहा है। इस तरह घटकी उत्पत्ति में मिट्री में विद्यमान पुदगलव नामका द्रव्यांश प्रध्यशक्ति रूपसे कारण न होकर उस मिट्टीमें ही विद्यमान मृत्तिकात्व नामका द्रव्यांश हो द्रव्यशक्तिरूपसे कारण होता है और तब स्थूल पर्यापोंकी अपेक्षा मिट्टीका घटरूप कार्याश्यवहित पूर्ववर्ती कुशूलरूप पर्यायांश तथा क्षणिक पर्यायोंकी अपेक्षा उस मिट्टीका ही घटरूप काम्पियहित पूर्व क्षणवर्ती पर्यायरूप पर्यायांश पर्यायशक्तिरूपसे कारण होता है । इसी प्रकार गेहूँकी अंकुरोत्पत्तिमें गेहूँमें विद्यमान पुद्गलव नामका दृश्यांश द्रव्यशक्तिरूपसे कारण न होकर उस गेहूं में ही विद्यमान गेहूँपना ( गोधूमत्व धर्म ) नामका द्रव्यांश ही द्रव्यशक्तिरूपसे कारण होता है और सब स्थूल पर्यायोंकी अपेक्षा गेहूँका गेहूँ की अंफुरोत्पत्तिरूप कार्याव्यवहित पूर्ववर्ती क्षेतमें वपन रूप पर्यायांश तथा क्षणिक पर्यायोंकी अपेक्षा उस गेहूँका ही गेहूँको अंकुरोत्पत्तिरूप कार्याव्यवहित पूर्व क्षणवर्ती पर्यायरूप पर्यायांश पर्यायशक्तिरूपसे कारण होता है ।
___ उपर्युक्त कथनसे जब यह बात सिद्ध हो जाती है कि हमारे मसानुसार ध की उत्पत्ति मिट्टीसे ही होती है और गेहूंके अंकुरको उत्पत्ति गेहूँ से ही होती है तो उनसे गेहूं के अंकुरकी उत्पत्तिको प्रसक्ति होनेकी जो आपत्ति आपने हमारे समक्ष उपस्थित की है उसका निरसन अपने आप ही हो जाता है। इस प्रकार जो कार्यकारणभावको व्यवस्था जैन संस्कृतिके अनुसार आगम प्रमाणोंके आधारपर बनती है उसका रूप निम्न तरहसे समझना चाहिए
कि मिट्टी आदि स्कन्धोंकी स्थिति परम्पराके रूप में अनादिकालसे ही चली आ रही है और इसो तरह अनन्तकाल तक चली जानेवाली है और जब मिट्टी आदि स्कन्ध उल्लिखित कथनके आधारपर द्रव्य ही सिद्ध होते हैं तो उनमें रहनेवाले मृत्तिकारख आदि द्रव्यांश भो नित्य ही सिख होते हैं । मृत्तिकासे घटको उत्पत्तिमें यह मृत्तिकाव धर्म ही मिट्टोमें पायी जानेवाली नित्य अपादान शक्ति है । यह उपादान शमित खानमें पड़ी हुई मिट्टी में भी पायी जाती है, लेकिन कि खानमें पड़ी हुई उस मिट्टी से खानमें पड़े-पड़े अपनेआप घटका बनना असम्भव है, अत: उक्त उपादान शक्तिकी जांच करके कुम्हार खानमें पड़ी हुई उस मिट्रीको घडा