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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
का खंडन करते हुए अनेकात्मवाद की भी सिद्धि की गई है। इसी प्रकार जीव को स्वदेहपरिमाण सिद्ध करते हुए यह बताया गया है कि अन्य पदार्थों की भाँति जीव भी नित्यानित्य है तश विज्ञान भूतधर्म न होकर एकस्वतन्त्र तत्त्व-आत्मतत्त्व का धर्म है। कर्म का अस्तित्व सिद्ध करने के लिए भी अनेक हेतु दिये गये हैं । कर्म को मूर्त सिद्ध करते हुए कर्म और आत्मा के सम्बन्ध पर भी प्रकाश डाला गया है तथा ईश्वरकर्तृत्व का खंडन किया गया है । आत्मा और देह के भेद की सिद्धि में चार्वाकसम्मत भूतवाद का निरास किया गया है एवं इन्द्रियभिन्न आत्मसाधक अनुमान प्रस्तुत करते हुए आत्मा की नित्यता एवं अदृश्यता का प्रतिपादन किया गया है। शून्यवाद के निरास के प्रसंग पर वायु, आकाश आदि तत्त्वों की सिद्धि की गई है तथा भूतों की सजीवता का निरूपण करते हुए हिंसा-अहिंसा के विवेक पर प्रकाश डाला गया है । सुधर्मा का इहलोक और परलोकविषयक संशय दूर करने के लिए कम-वैचित्र्य से भव-वैचित्र्य की सिद्धि की गई है एवं कर्मवाद के विरोधी स्वभाववाद का निरास कर कर्मवाद की स्थापना की गई है। मंडिक के संशय का निवारण करने के लिए विविध हेतुओं से बंध और मोक्ष की सिद्धि की गई है तथा मुक्त आत्माओं के स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है। इसी प्रकार देव, नारक, पुण्य-पाप, पर-भव और निर्वाण की सत्ता सिद्ध करते हुए जैनदर्शनाभिमत निर्वाण आदि के स्वरूप का प्रतिपादन किया गया है । सामायिक के ग्यारहवें द्वार समवतार का व्याख्यान करते हुए भाष्यकार ने अनुयोगोंचरणकरणानुयोग, धर्मकथानुयोग, गणितानुयोग और द्रव्यानुयोग के पृथक्करण की चर्चा की है और बताया है कि आर्य वज्र के बाद होने वाले आर्य रक्षित ने भविष्य में मति-मेघा-धारणा का नाश होना जानकर अनुयोगों का विभाग कर दिया। उस समय तक सब सूत्रों की व्याख्या चारों प्रकार के अनुयोगों से होती थी। आय रक्षित ने इन सूत्रों का निश्चित विभाजन कर दिया । चरणकरणानुयोग में कालिक श्रुतरूप ग्यारह अंग, महाकल्पश्रुत और छेदसूत्र रखे । धर्मकथानुयोग में ऋषिभाषितों का समावेश किया। गणितानुयोग में सूर्यप्रज्ञप्ति को रखा। द्रव्यानुयोग में दृष्टिवाद को समाविष्ट किया। इसके बाद उन्होंने पुष्पमित्र को गणिपद पर प्रतिष्ठित किया। इसे गोष्ठामाहिल ने अपना अपमान समझा और वह ईर्ष्यावश संघ से अलग हो अपनी नई मान्यताओं का प्रचार करने लगा। यही गोष्ठामाहिल सप्तम निह्नव के रूप में प्रसिद्ध है। नियुक्तिकारनिर्दिष्ट सात निह्नवों में शिवभूति बोटिक नामक एक और निह्नव मिलाकर भाष्यकार जिनभद्र ने प्रस्तुत भाष्य में निम्नलिखित आठ निह्नवों की मान्यताओं का वर्णन किया है : १. जमालि, २. तिष्यगुप्त,
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