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जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 21
पाँच प्रकार की शुद्धि एवं ज्ञान, दर्शन, चारित्र, विनय तथा आवश्यक - ऐसी पाँच प्रकारों की शुद्धि का निर्देश करते हुए रसनेन्द्रिय आदि पाँच इन्द्रियों के विषयों का तथा शरीर, शय्या, सर्वउपधि, आहार, पानी और वैयावृत्यकारक - इन पाँचों के प्रति राग को त्यागने का उल्लेख है। इसके पश्चात् सर्वत्याग के विषय पर सहस्त्रमल्ल की कथा का उल्लेख उपलब्ध होता है। (११) ग्यारहवें मरणविभक्ति-द्वार में अविचि आदि सत्तरह प्रकार के मरण की चर्चा की गई है। इसमें वैखानस (वेहायस) और गृद्धपृष्ठमरणों की कंथचित् उपादेयता का निर्देश करने के साथ इस विषय पर जयसुन्दर और सोमदत्त की कथा एवं उदायीनृप का दृष्टान्त उपलब्ध है। इसमें भक्तपरिज्ञामरण, इंगिनीमरण एवं पादपोपगमनमरण स्वीकार करने वाले की योग्यता आदि का भी विस्तृत रूप से विवेचन किया गया है। (१२) बारहवें पण्डितमरण-द्वार में पण्डित-पण्डित-मरण आदि पाँच प्रकार के मरणों का विवेचन है, साथ ही मरण के स्वरूप एवं मरण का अधिकारी कौन है? तथा बालमरण एवं बाल-बाल-मरण से भवों की वृद्धि होती है, इसका समीचीन निरूपण किया गया है। इसमें सुन्दरी-नन्द के उदाहरण द्वारा पण्डित-मरण की महिमा का विवेचन प्रस्तुत किया गया है। (१३) तेरहवें श्रेणी-द्वार में हमें यह बताया गया है कि श्रेणी-आरोहण क्रमिक आत्मविकास का सूचक है एवं श्रेणी से पतित होने के विषय पर स्वयंभूदत्त का प्रबन्ध तथा सर्पदंश की दुष्टता एवं अदुष्टता का उल्लेख है। (१४) चौदहवें भावना-द्वार में मुख्यतः प्रशस्त एवं अप्रशस्त-भावना के पाँच-पाँच प्रकारों की चर्चा की गई है। सर्वप्रथम भावना के दो भेद - प्रशस्त-भावना एवं अप्रशस्त-भावना की चर्चा करके, अप्रशस्त भावना के अन्तर्गत कन्दर्प आदि पाँच भावनाओं का और उनमें से प्रत्येक के पाँच-पाँच भेदों का उल्लेख है; साथ ही भावना के स्वरूप एवं उसके फल का रोचक निरूपण किया है। तत्पश्चात् तप, श्रुत, एकत्व, सत्व और धैर्यबल-इन पाँच प्रशस्त-भावनाओं की चर्चा है। इसमें एकत्व-भावना पर जिनकल्पिक मुनि के धैर्यबल पर आर्य महागिरि की कथा दी गई है। जिनशासन के गौरवस्वरूप गजाग्रपदतीर्थ का रोचक इतिहास प्रस्तुत है। (१५) संवेगरंगशाला के प्रथम परिकर्मद्वार के अन्तिम पन्द्रहवें संलेखना-प्रतिद्वार में अनशन आदि छ: बाहय तपों के स्वरूप का उल्लेख है। संलेखनाविधि के जघन्य एवं उत्कृष्ट कालमान का निर्देश करते हुए संलेखना की विराधना के सन्दर्भ
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