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( गमन) - समिति निक्षेपण ५. उच्चारादि - प्रतिस्थापन समिति ।
9.
चलना चाहिए।
२.
(१) ईर्या-समिति :
जीवों की रक्षा के लिए सावधानी के साथ चार हाथ जमीन देखकर चलना ईर्यासमिति है। श्रीमद्देवचन्द्रजी ने ईर्ष्या-समिति की सज्झाय में साधु के आवागमन के चार कारण बताए हैं:
१. जिनवन्दन
२. विहार
आदि।
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३. आहार और ४. निहार । उत्तराध्ययन के अनुसार मुनि को चलने की क्रिया करते समय स्वाध्याय, बातचीत, चिन्तन करना, आदि क्रियाओं का निषेध किया गया है तथा आलम्बन, काल, मार्ग और यतना, आदि अनेक नियम प्रस्तुत किए गए हैं। आचारांगसूत्र में इसी की चर्चा और विस्तार से उपलब्ध होती है।
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चलते समय सावधानीपूर्वक सामने की भूमि को देखते हुए
४.
जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 117
२. भाषा-समिति ३. एषणा - समिति ४.
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आदान-भण्ड
भय और विस्मय का त्याग कर चलना चाहिए।
वनस्पति, त्रण - पल्लव, आदि से एक हाथ दूर चलना चाहिए। चलते समय हाथ-पैरों को आपस में टकराना नहीं चाहिए,
इस प्रकार उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट निर्णय लिया जा सकता है कि मुनि जीवन के मूल में हिंसा से बचने का विधान है, इसलिए आवागमन की क्रिया अत्यन्त आवश्यक कार्य होने पर ही की जाना चाहिए, ताकि मुनि सूक्ष्म जीवों की विराधना से बच सके।
(२) भाषा-समिति :
यतनापूर्वक हित, मित, प्रिय, निरवद्य एवं सत्य वचन बोलने को भाषा-समिति कहा गया है। मुनि को सदोष, कर्कश, निष्ठुर, अनर्थकारी, जीवों को
170 जिनवन्दन गामान्तरे जी के आहार निहार, श्रीमद् देवचन्द्र सज्झायमाला, भाग-१, पृ. ७
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उत्तराध्ययन सूत्र - २४१८.
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आचारांगसूत्र - २/१३/२ - ११.
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