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164 / साध्वी श्री प्रियदिव्यांजना श्री
बाल, नख को काटते हुए देखे, तो उसकी शीघ्र मृत्यु होगी - ऐसा जानना चाहिए । जब स्वप्न में
स्वयं को तेल से अथवा काजल से विलेपन किया हुआ देखे, अथवा स्वयं की केशराशि को बिखरी हुई देखे, अथवा स्वयं को वस्त्ररहित एवं गधे या ऊँट पर बैठकर दक्षिण दिशा की ओर जाते हुए देखे, तब भी व्यक्ति की जल्दी मृत्यु होती है। 309 यही बात योगशास्त्र में कुछ भिन्न प्रकार से प्रतिपादित की गई है, जैसे ऊँट या सूअर के ऊपर स्वयं को सवारी करते देखे, अथवा उनके द्वारा स्वयं को खिंचाता हुआ देखे, तो एक वर्ष के मृत्यु होती है। "310 “जबकि संवेगरंगशाला में ऐसा वर्णन मिलता है कि स्वप्न में जिसे सियार के बच्चे खींच रहे हों, वह प्रायः बुखार से मृत्यु को प्राप्त करता है एवं जिसको सूअर, गधा, कुत्ता, ऊँट, भेड़िया, भैंसा, आदि दक्षिण दिशा में खींचकर ले जाएं, उसकी श्वास की बीमारी से मृत्यु होती है। " 3। इस प्रकार स्वप्नद्वार - विवेचन में दोनों ग्रन्थों में कुछ भिन्नता दृष्टिगत होती है।
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“यदि मनुष्य स्वप्न में अपने को चाण्डालों के संग घी, तेल, आदि स्निग्ध वस्तुओं का पान करते हुए देखें, तो वह प्रमेह दोष से मरता है एवं सूर्य-चन्द्र को नीचे गिरते हुए देखता है, तो नेत्ररोग से मरता है । सूर्यग्रहण एवं चन्द्रग्रहण को देखे, तो मूत्रकृच्छ रोग से मृत्यु होती है। स्वप्न में जो सुपारी अथवा तिल - पापड़ी का भक्षण करे, तो वह उसी प्रकार के वर्त्तन करते हुए मरता है। स्वप्न में स्वयं को लाल पुष्पों से सज्जित, सिर से मुण्डित एवं वस्त्र से रहित तथा स्वयं को चाण्डाल दक्षिण दिशा में खींचता हो ऐसा देखे, तब भी वह शीघ्र मरता है तथा स्वप्न में जिसके मस्तक पर बांस की लता उत्पन्न हुई हो, पक्षी घोंसला डालते हों, कौआ, गिद्ध, आदि सिर पर चढ़ते हों, तो उस व्यक्ति की मृत्यु भयंकर बीमारी से होती है । "312 " जबकि योगशास्त्र में, ऐसे स्वप्न देखनेवालों की छः महीने के बाद मृत्यु होती है- ऐसा उल्लेख किया गया है, साथ ही योगशास्त्र में ऐसा कहा गया है कि जो स्वप्न में उल्टी, मूत्र, विष्ठा, सोना एवं रूपा को देखता है, तो वह नौ महीने में मरता है एवं काले वर्ण, काले परिवार वाले मनुष्य को देखे, तो तीन महीने में मरता है । "
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311 विगरंगशाला, गाथा ३१६२-३१६३. संवेगरंगशाला, गाथा ३२६८-३२०४. योगशास्त्र, गाथा १५१, १४०.
313
संवेगरंगशाला, गाथा ३१८६-३१८६. योगशास्त्र, गाथा १३७.
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