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224 / साध्वी श्री प्रियदिव्यांजनाश्री
२. मृषावाद :- संवेगरंगशाला में ग्रन्थकार मृषावाद के विषय में उल्लेख करते हुए कहते हैं- मृषावचन अविश्वासरूप वृक्षों के समूह का अति भयंकर कंद है। मनुष्यों के विश्वासरूप पर्वत के शिखर पर वज्राग्नि का गिरना है, निन्दारूपी वेश्या को आभूषण का दान है, सद्भावरूपी अग्नि मे जल का छिड़काव है और अपयशरूपी कुलटा को मिलने का सांकेतिक - घर है, दोनों जन्म में उत्पन्न होने वाले आपत्तिरूप कमलों को विकसित करनेवाला शरद-: द ऋतु का चन्द्र है। यह विशुद्ध धर्मरूपी धान्य- सम्पत्तियों को नष्ट करने में दुष्ट वायु है एवं सज्जनतारूपी वन को जलाने में तीव्र दावानल के समान है, इसलिए साधक को इसका त्याग करना चाहिए 1503
जैसे विषमिश्रित भोजन तथा जरायुक्त - यौवन दोनों ही शरीर के लिए परम घातक सिद्ध होते हैं, वैसे ही असत्य भाषण को भी धर्म का विनाशक एवं घात करनेवाला जानना चाहिए। एक बार भी कहा गया असत्य, अनेक बार कहे गए सत्य का नाश कर देता है और इससे वह अविश्वास का पात्र बनता है। जो रिश्वत लेकर झूठी साक्षी देता है, वह स्वयं की आत्मा का घात करके महाभयंकर नरक में गिरता है तथा सदाचार, कुल, लज्जा, मर्यादा, यश, जाति, न्याय, शास्त्र और धर्म का त्याग करता है एवं इन्द्रिय-रहित, जड़, मूक ( गूंगा), बेस्वर, दुर्गन्ध मुखवाला एवं निन्दा का पात्र बनता है ।
मृषावचन स्वर्ग एवं मोक्ष के दरवाजे को बन्द करनेवाली जंजीर हैं तथा दुर्गति का सरल मार्ग है, इसलिए साधक आत्मा को झूठ नहीं बोलना चाहिए । असत्य वचन जो अहितकारी, पीड़ाकारी एवं दुःखजनक हों, तो हास्य में भी कभी नहीं कहना चाहिए, किन्तु जो वचन कीर्तिकारी, नरक के द्वार को बन्द करने में जंजीर के समान, सुख एवं पुण्य का निधानरूप, गुणों का दीपकरू, मधुर, स्व-पर-पीड़ानाशक, प्रकृति से सौम्य - शीतल, निष्पाप आदि गुणों से युक्त हों, उसी वचन को सत्य जानकर साधक को हित - मित- प्रिय वचन कहना चाहिए। इस प्रकार सत्य वचन कहनेवाला मनुष्य सुखी रहता है, समाधि प्राप्त करता है, प्रमोद - गुण से युक्त प्रीतिपरायण, प्रशंसनीय एवं शुभ प्रकृति आदि से परिजनों का प्रिय बनता है। । इस तरह सत्य की हमेशा जीत होती है। सत्य में तप है, सत्य में संयम है और सत्य में ही सर्व गुण रहे हुए हैं, इसलिए हे क्षपक! सत्य एवं असत्य के गुण-दोष को जानकर असत्यवचन का त्याग कर एवं सत्यवचन का उच्चारण कर । इस प्रसंग में वसुराजा और नारद की कथा कही गई है । '
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संवेगरंगशाला, गाथा ५६८०-५६८४. 504 संवेगरंगशाला, गाथा ५६६७-५७२०.
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