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284 / साध्वी श्री प्रियदिव्यांजनाश्री
ज्ञाता है। इस तरह लोक के यथार्थस्वरूप को जानकर साधक को आत्मा में रमण करना चाहिए, क्योंकि लोकभावना के चिन्तन का असली उद्देश्य तो आत्माराधना ही है।
बोधिदुर्लभ-भावना :- बोधिदुर्लभ-भावना के द्वारा यह चिन्तन किया जाता है कि सन्मार्ग का जो बोध प्राप्त हुआ है, उसका सम्यक् आचरण करना अत्यन्त दुष्कर है- इस दुर्लभ बोध को पाकर भी यदि सम्यक् आचरण के द्वारा आत्मविकास नहीं किया, तो पुनः ऐसा बोध प्राप्त होना अत्यन्त कठिन है।
संवेगरंगशाला में जिनचन्द्रसूरि ने बोधिदुर्लभता का विवेचन करते हुए कहा है- कर्म की परतन्त्रतावश जीव संसाररूपी अटवी में अनादिकाल से परिभ्रमण कर रहा है। इस भवसागर में ऐसे अनन्त जीव हैं, जिन्हें अभी तक त्रसपर्याय भी प्राप्त नहीं हुआ, अतः जिस प्रकार बालू के समुद्र मे गिरी हुई वज्रसिक्ता की कणिका का मिलना दुर्लभ है, उसी प्रकार स्थावर जीवों से भरे हुए इस भवसागर में त्रसपर्याय का मिलना अत्यन्त दुर्लभ है। अत्यन्त दुर्लभता से ही कुछ जीवों को त्रसपर्याय मिलती भी है, तो भी वे बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय आदि पर्यायों में ही भ्रमण करते रहते हैं, किन्तु पंचेन्द्रिय पर्याय को प्राप्त नहीं हो पाते है। जिस प्रकार गुणों के समूह में कृतज्ञता का मिलना अति दुर्लभ है, उसी प्रकार त्रसपर्याय से पंचेन्द्रियपर्याय सम्प्राप्त करना अत्यन्त दुर्लभ है। अति दुर्लभता से पंचेन्द्रियपर्याय को प्राप्त करने के पश्चात् भी वह जलचर, नभचर, स्थलचर, खेचर, आदि पर्यायों में उत्पन्न होता रहता है, किन्तु जिस प्रकार चौराहे पर खोई हुई रत्नराशि का पुनः प्राप्त होना कठिन है, उसी प्रकार मनुष्यपर्याय का प्राप्त होना भी अति कठिन है।
संवेगरंगशाला में मनुष्यपर्याय मिलना कितना दुष्कर है, उसे एक उदाहरण द्वारा बताया गया है। स्वयंभूरमण समुद्र में पूर्व-दिशा के किनारे से एक जुआ पानी में तैर रहा था और पश्चिम किनारे से एक कीली। क्या कभी हवा के झोकों से लहरों पर तैरती हुई कीली जुएँ के छेद में अपने-आप आकर लग सकती है? यह असम्भव है। फिर भी, यदि यह मान लें कि ऐसा कभी सम्भव हो भी सकता है, तो भी एक बार मनुष्य-भव को खो देने पर पुनः प्राप्त कर लेना अत्यन्त कठिन है।
पुरुषार्थ के द्वारा अथवा पुण्य के द्वारा या भाग्य के योग से येनकेन-प्रकारेण जीव मनुष्यभव को अत्यन्त कठिनता से प्राप्त करता है, किन्तु मनुष्यपर्याय मिल जाने से ही सम्पूर्णता की प्राप्ति नहीं हो सकती है। एक बार
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