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जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 327
ने अपने स्थान पर पुत्र को स्थापित किया और स्वयं मुनि-वेश धारण कर लिया। इस तरह सर्व संग को छोड़कर नगर से बाहर उद्यान में जाकर राजा कायोत्सर्ग-मुद्रा में ध्यानस्थ हो गया।
नमि राजर्षि के भावों की परीक्षा की जाना चाहिए- ऐसा विचार कर इन्द्र ने ब्राह्मण का रूप धारण किया और मुनि के पास आकर कहा- “हे मुनि! पुंग मिथिला नगरी भयंकर आग में जल रही है। सर्वत्र प्रजा विलाप कर रही है। उन्हें देखो? क्या आपको उनके करुण शब्द सुनाई नहीं दे रहे हैं?" इसके प्रत्युत्तर में नमि राजर्षि ने कहा- “जब महा छायावाला तथा फल-फूल देनेवाला वृक्ष तेज पवन से टूट जाता है, तब शरणरहित दुःखी हुए पक्षी विलाप करते हैं, उसी तरह नगर के नष्ट होने पर प्रजाजन विलाप कर रहे हैं।"
__इन्द्र ने फिर कहा- “आपका परिवार, प्रियजन एवं महल आदि जल रहे हैं, अन्तःपुर में क्रन्दन करती हुई स्त्रियाँ कह रही हैं, हे नाथ! रक्षा करो! उनकी यह दयनीय स्थिति तो देखो।" मुनि ने कहा- "मित्र, स्वजन और स्त्रियाँ-इन सबको मैंने छोड़ दिया है। आत्मा के अतिरिक्त मेरा कुछ भी तो नहीं है। मिथिला जलती हो, तो इसमें मेरा क्या जल रहा है।"
पुनः, इन्द्र ने इस प्रकार कहा- "हे मुनि! आप प्रजा के वात्सल्यप्रदाता एवं रक्षक हैं, इसलिए नगर में किले आदि बनवाकर फिर तुम्हें दीक्षा लेना था।" मुनि बोले- “मैंने श्रद्धारूपी नगरी में संवररूपी अर्गला को लगाया है, धर्मरूपी ऊँचा किला बनवाकर कर्मरूपी शत्रु का विनाश करने के लिए तपरूपी बाण तथा पराक्रमरूपी धनुष को तैयार किया है। इस प्रकार मैं अपनी आत्मा की रक्षा कर रहा हूँ।" इन्द्र ने पुनः कहा- "हे मुनि! तुम्हें चोर आदि को पकड़कर एवं शत्रु राजाओं को जीतकर फिर दीक्षा लेना चाहिए थी।" राजर्षि बोले- “हनन तो आन्तरिक शत्रुओं का करना चाहिए, वही आत्मा का अहित करनेवाला है। संसार में अगर कुछ दुर्जेय है, तो वह आत्मा है। जिसने क्रोधादि कषायों एवं पाँचों इन्द्रियों को जीत लिया, उसने जीतने योग्य सर्व राजाओं को जीत लिया है।" इस प्रकार इन्द्र ने भयभीत करने एवं ललचानेवाले अनेक प्रश्नों को पूछकर मुनि की परीक्षा ली, जिसमें मुनि को स्वर्ण के समान शुद्ध स्वरूपवाला जानकर वे अति हर्षित हुए।
अन्त में इन्द्र ने पूछा- "हे राजन! राज्य-भोगों का त्याग करके पुनः सन्ताप से पीड़ित क्यों होते हो?" मुनि ने उत्तर दिया- “एकदा विष का पान लाभकारी हो सकता है तथा अग्नि में जलकर मरना हितकर हो सकता है, लेकिन
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