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334/ साध्वी श्री प्रियदिव्यांजनाश्री
इधर मदन-मंजूषा ताराचन्द्र को घर में नहीं देखकर रुदन करने लगी। इस पर माता ने उसे कहा- "हे पुत्री! वह तो रत्न-अलंकारों की चोरी करके भाग गया है। उससे तू आज ठगी गई है। मेरे द्वारा बार-बार रोकने पर भी उस निर्धन परदेशी से तूने राग किया।" इस प्रकार कहकर कठोर वचनों से माता उसका तिरस्कार करने लगी, जिससे वह भयभीत होकर चुप हो गई।
__ इधर दोनों मित्र श्रावस्ती नगरी के बाहर पहुँचे। पुत्र का आगमन जानकर राजा ने उसका धूमधाम से नगर में प्रवेश करवाया। तत्पश्चात् राजा द्वारा पूछने पर कुमार ने अपना सारा वृत्तान्त कह सुनाया। मन में प्रसन्न हुए राजा ने कुरुचन्द्र को मन्त्री पद दिया, ताराचन्द्र को राजसिंहासन पर बैठाया और स्वयं दीक्षा लेकर श्रेष्ठ आत्म-साधना द्वारा देवलोक में जन्म लिया।
ताराचन्द्र निष्पाप जीवन जीने लगा और अनासक्त-भाव से राज्य के भोगों को भोगने लगा। एक दिन आचार्य विजयसेनसूरि का नगरी में आगमन जानकर ताराचन्द्र ने विशेष धर्म सुनने के लिए आचार्यश्री को अपने महलं में वसति दी और प्रतिदिन उनसे शास्त्रों का श्रवण करने लगा। इससे ताराचन्द्र ने अन्तिम संलेखना-व्रत तक का सर्व परमार्थ जाना। इस तरह शास्त्र-श्रवण से कुरुचन्द्र के सिवाय अनेक लोग प्रतिबोधित हुए।
परोपकार की दृष्टि से ताराचन्द्र ने कुरुचन्द्र से मुनि को वसति-दान करने के लिए कहा। राजा के आग्रह से उसने मुनि को घर में रहने का स्थान दिया और उनसे उपदेश भी सुनने लगा, परन्तु उसने अपनी सद्भावना से धर्म को स्वीकार नहीं किया।
आगमानुसार, ताराचन्द्र दान, शील, तप और भाव, आदि चार प्रकार के धर्म में प्रवृत्ति करने लगा। उसने मन्दिर-निर्माण करवाकर अष्टानिका, आदि महोत्सव करवाए। अपने महल के समीप पौषधशाला बनवाकर वह स्वयं अष्टमी-चतुर्दशी को पौषध करने लगा। इस प्रकार विशेष आराधना का अभिलाषी शुद्ध परिणामवाला वह राजा अपनी मृत्यु के पश्चात् बारहवें देवलोक में देव बना।
कुरुचन्द्र अज्ञान एवं प्रमादवश आर्त्तध्यान में प्रवृत्ति करने लगा. जिससे उसे मरकर अनेक बार तिर्यंचयोनि में जन्म लेना पड़ा। कालान्तर में उसका जीव जंगल में भीलरूप में उत्पन्न हुआ। वहाँ जैन-साधुओं को देखकर उसको जाति-स्मरण-ज्ञान हुआ, जिससे वह अपने पूर्वजन्मों को देखने लगा एवं चिन्तन करने लगा। 'राजा के द्वारा कितना समझाए जाने पर भी मेरा कल्याण नहीं हो सका। मैं कितना भारीकर्मी जीव हूँ। मुझे सद्गति कैसे मिलेगी? अब मुझे शीघ्र
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