Book Title: Jain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Author(s): Priyadivyanjanashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 431
________________ जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 393 करते हैं, अतः मुझे भी अपने दोषों का त्याग करके गुणों को प्रकट करना चाहिए। ऐसा सोचकर वह एक मुनि के पास गया और वहाँ उसने जिन-प्रणीत वचन को श्रवण किया, जिससे उसे वैराग्य उत्पन्न हुआ और उसने दीक्षा स्वीकार कर ली। उसका नाम मातंग मुनि रखा गया। एक दिन विचरते हुए वे मुनि वाराणसी नगरी के यक्ष मन्दिर में पहुँचे। वहाँ मातंग मुनि द्वारा की गई अन्य मुनियों की सेवा-भक्ति को देखकर वहाँ का यक्ष मुनि पर अति प्रसन्न हुआ और जीवन भर उनकी सेवा में रहने लगा। ____एक बार कौशलदेश के राजा की पुत्री भद्रा यक्ष के मन्दिर में आई। वहाँ उसने मुनि को ध्यान में खड़े देखकर उनकी निन्दा की। इससे यक्ष कुपित होकर भद्रा के शरीर में प्रवेश कर गया, और उसे तंग करने लगा। किसी तरह भद्रा राजमहल पहुँची। राजा द्वारा भद्रा का अनेक उपचार करने पर भी कोई लाभ नहीं हुआ। एक दिन यक्ष ने राजा से कहा- "इस कन्या ने मुनि की निन्दा की है, इसको मुनि को सौंप दिया जाए, तभी छुटकारा मिलेगा।" पुत्री के प्राणों की रक्षा के लिए राजा उसका विवाह मुनि के साथ करने को तैयार हो गया। भद्रा भी मुनि के पास आकर माफी मांगने लगी और स्वयं को स्वीकार करने की विनती करने लगी। मुनि तो ध्यानस्थ थे, और ध्यान में ही खड़े रहे, उन्होंने उसका कोई प्रत्युत्तर नहीं दिया, किन्तु यक्ष ने उस भद्रा को खूब परेशान किया। वहाँ से पुनः मुश्किल से छूटकर वह भद्रा अपने माता-पिता के पास राजमहल में आई। भद्रा को देखकर राजपुरोहित ने राजा से कहा- “यह कन्या तो साधु द्वारा त्याग की गई है, अतः इसका विवाह ब्राह्मण के साथ करना होगा।" राजा ने अपनी पुत्री का विवाह रुद्रदेव ब्राह्मण के साथ किया, फिर भद्रा उस ब्राह्मण के साथ अपने दिन व्यतीत करने लगी। __ एक दिन रुद्रदेव द्वारा एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया गया। उस यज्ञ में अनेक पण्डितों को बुलाया गया, उस यज्ञ के पश्चात् सबके भोजन की व्यवस्था भी की गई। उसी दिन मातंग मुनि के मासक्षमण का पारणा था, अतः वे भिक्षा हेतु उसी यज्ञशाला में पधारे। वहाँ ब्राह्मणों ने उन्हें दान नहीं दिया और पापी, दुष्ट, आदि अपशब्द कहकर दुत्कारते हुए बाहर निकाल दिया। इस तरह मुनि की निन्दा करते देख वह यक्ष मातंग मुनि के शरीर में प्रवेशकर उनसे फिर भिक्षा मांगने लगा। इस पर ब्राह्मणों ने मुनि को निकालने के लिए कुमारों को भेजा। इससे कुपित हुआ यक्ष उन ब्राह्मणों को मारने लगा। इस दृश्य को देखकर राजपुत्री भद्रा ने उन ब्राह्मणों को रोककर कहा- "ये वही मुनि हैं, जिन्होंने मुझे यक्ष से मुक्त किया था। आप सभी इनसे क्षमा मांगो।" वे सभी मुनि से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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