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390 / साध्वी श्री प्रियदिव्यांजनाश्री
गंगा नदी के किनारे नन्द नाम का एक नाविक रहता था। वह लोगों से नदी पार करवाने का अधिक किराया लेता था। एक दिन वहाँ धर्मरुचि मुनि का आगमन हुआ। मुनि को भी नदी पार करना थी, परन्तु उनके पास नाविक को देने के लिए किराया नहीं था, इसलिए नाविक ने उन्हें गंगा नदी के पार जाने से रोक रखा था। भिक्षा का समय भी टल गया। प्रातः काल से आए मुनि को मध्याहूनकाल हो गया। सूर्य की तेज किरणों से पीड़ित हो रहे मुनि पर नाविक को जरा भी दया नहीं आई। जब किसी भी प्रकार से नाविक उन्हें मुफ्त में ले जाने के लिए तैयार नहीं हुआ, तब मुनि को नाविक पर तीव्र क्रोध उत्पन्न हुआ और उन्होंने अपनी दृष्टिरुपी ज्वाला से नाविक को भस्मसात् कर दिया तथा स्वयं अन्यत्र चले गए।
वह नाविक मरकर कोयल बना और एक सभा भवन में रहने लगा । अन्यत्र विचरते हुए एक दिन मुनि ने आहार- पानी लेकर आहार करने के लिए उसी सभा में प्रवेश किया। वहाँ मुनि को देखकर कोयल को पूर्व वैर जाग्रत हुआ। जब मुनि आहार करने बैठे, तब वह कोयल ऊपर से उन पर कचरा गिराने लगी। इस तरह मुनि द्वारा बार-बार स्थान परिवर्तन करने पर भी वह उसी तरह कचरा गिराती रही। मुनि को कोयल पर तीव्र क्रोध उत्पन्न हुआ और क्रोध में वे कहने लगे- “कौन है, जो नन्द के समान मेरे साथ दुष्ट प्रवृत्ति कर रहा है ?” ऐसा कहकर मुनि ने उसे भी अपनी दृष्टिज्वाला से जलाकर भस्म कर दिया।
यहाँ से मरकर उस नाविक का जीव गंगा नदी के किनारे हंस बना, तत्पश्चात् वहाँ से मरकर वह अंजन पर्वत पर सिंहरूप में उत्पन्न हुआ और उसके पश्चात् वहाँ से भी मरकर वह वाराणसी में बटुक ब्राह्मण बना। वह प्रत्येक भव में मुनि को देखकर क्रोधातुर बनता और उनका अनिष्ट करता। इधर मुनि भी पूर्व वैर के कारण प्रत्येक भव में उसे दृष्टिज्वाला से जलाकर भस्म करते रहे।
फिर वहाँ से भी मरकर वह एक राजा बना। राज्य - सुख भोगता हुआ राजा अपने पूर्वभव का चिन्तन करने लगा, जिससे उसे जाति- स्मरण - ज्ञान उत्पन्न हुआ। मुनि के साथ पूर्व वैर होने से भयभीत बना राजा विचार करने लगा कि यदि इस भव में भी मुनि मुझे मार देगा, तो मैं राज्य - सुख से वंचित रह जाऊँगा । इस प्रकार चिन्तित राजा उससे बचने के लिए उपाय सोचने लगा। कुछ विचारकर राजा ने ( मुनि को खोजने के लिए ) एक श्लोक की तीन पंक्तियां बनाकर राजमहल के बाहर टांग दी। फिर इस तरह की उद्घोषणा करवाई कि जो भी इस श्लोक को पूर्ण करेगा उसे राजा अपना आधा राज्य देगा ।
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