________________
जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 163
होता हो, तो वह मनुष्य निरोगी होने पर भी मृत्यु को प्राप्त करता है, तो रोगी की तो फिर बात ही क्या करना ?”3 (
यही बात हेमचन्द्राचार्य ने भी अपने योगशास्त्र 306 के पाँचवें प्रकाश में कही है। प्रश्न- लग्न के अनुसार मरणकाल का विवेचन करते हुए ज्योतिषद्वार में यह कहा गया है कि आयुष्य सम्बन्धी प्रश्न करते समय यदि क्रूर ग्रह चौथे, सातवें या दसवें लग्न में रहा हो और चन्द्रमा छठी या आठवीं राशि में हो, तो निश्चय से मृत्यु होती है। 307 योगशास्त्र के पाँचवें प्रकाश में भी ऐसा ही विवेचन उपलब्ध होता है। यदि प्रश्न करते समय लग्न - अधिपति मेषादि राशि में गुरु, मंगल, शुक्रादि हो, अथवा चालू लग्न का अधिपति अस्त हो गया हो, तो निरोगी मनुष्य की भी मृत्यु होती है । 3082
इसी तरह प्रश्न करते समय लग्न में चन्द्रमा स्थिर हो, बारहवें में शनि हो, नौंवें में मंगल हो, आठवें में सूर्य हो, किन्तु बृहस्पति बलवान् नहीं हो, तो उसकी मृत्यु होती है और यदि चन्द्रमा दसवें में हो और सूर्य तीसरे या छठे स्थान में हो, तो तीसरे ही दिन उसकी दुःखपूर्वक मृत्यु होने वाली है- ऐसा समझना चाहिए।
यदि पापग्रह ( खराब ग्रह ) लग्न के उदयस्थान से चौथे या बारहवें में हों, तो उसकी (कालमान वाले पुरुष की ) तीसरे दिन मृत्यु होगी - ऐसा बताते हैं। प्रश्न करते समय चालू लग्न में, अथवा पाँचवें स्थान में पापग्रह हो, तो निःसंदेह निरोगी भी पाँच दिन में मरेगा । इसी तरह योगशास्त्र में चालू लग्न में पापग्रह पाँचवें स्थान में हो, तो मनुष्य की आठ या दस दिन के बाद मृत्यु होती है- ऐसा उल्लेख मिलता है। अशुभग्रह यदि धनु राशि और मिथुन राशि में तथा सांतवें स्थान में हों, तो व्याधि उत्पन्न होती है, अथवा मृत्यु होती है - इस प्रकार ज्योतिष जानने वालों ने कहा है ।
स्वप्न-द्वार:- प्रस्तुत द्वार में ग्रन्थकार ने स्वप्न के माध्यम से मृत्युकाल को किस प्रकार जाना जा सकता है, इसका प्रतिपादन किया है- “जैसे- स्वप्न में विकृत नेत्रवाली बंदरी द्वारा स्वयं को आलिंगन करते देखे, अथवा दाढ़ी, मूँछ,
305 विगरंगशाला, गाथा ३१६६-३१७०.
306 योगशास्त्र, गाथा १६७ - २००.
307 सवगरंगशाला, गाथा ३१७८- ३१७६ 308 योगशास्त्र, गाथा २०१-२०२.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org