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जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 181
अनुसार बाल, अर्थात् अज्ञानी, अबोध, मिथ्यादृष्टि, असंयमी, आदि के मरण को बालमरण कहा गया है। अविरतसम्यग्दृष्टि भी चारित्र की अपेक्षा से बाल ही है।
६. पण्डितमरण :- संवेगरंगशाला में यम, नियम, संयम, आदि सर्वविरतियुक्त जीव की मृत्यु को पण्डितमरण कहा गया है। 70
समवायांगसूत्र में सम्यग्दृष्टि जीव को पण्डित कहा है तथा उसके मरण को पण्डितमरण कहा गया है। सामान्यतः छठवें गुणस्थान से लेकर ग्यारहवें गुणस्थान तक के जीवों के मरण को पण्डितमरण कहा गया है। 371 भगवतीआराधना में ज्ञान, दर्शन और चारित्र से युक्त जीव को पण्डित कहा गया है तथा ऐसे जीवों के मरण को पण्डितमरण कहा गया है। पण्डित चार प्रकार के बताए गए हैं, वे निम्न हैं -
१. व्यवहार-पण्डित २. दर्शन पण्डित ३. ज्ञान-पण्डित और ४. चारित्र-पण्डित। इनमें चारित्र पण्डित का मरण ही पण्डितमरण है।372
१०. बालपण्डितमरण :- संवेगरंगशाला में बालपण्डितमरण पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि देशविरति को स्वीकार करके जो जीव मृत्यु को प्राप्त होता है, उसका मरण बालपण्डितमरण कहलाता है। 373 समवायांगसूत्र में बालपण्डितमरण पर चर्चा करते हुए कहा गया है - जो जीव देशविरति हो, पंचम गुणस्थानवर्ती हो, व्रती श्रावक हो, तो ऐसे मनुष्य या तिथंच पंचेन्द्रिय जीव के मरण को बालपण्डितमरण कहा जाता है। 374 भगवतीआराधना में सम्यग्दृष्टि-संयतासंयत जीव के मरण को बालपण्डितमरण कहा गया है।75
११. छद्मस्थमरण :- मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्यवज्ञान से युक्त छ्यस्थ-श्रमण का मरण छ्यस्थमरण कहलाता है। 376 समवायांगसूत्र में केवलज्ञान उत्पन्न होने के पूर्व बारहवें गुणस्थान तक के जीव छयस्थ कहलाते हैं,
369 भगवतीआराधना, पृ. ५३ 37° संवेगरंगशाला, गाथा ३४५६. 377 समवायांगसूत्र, पृ. ५४. 372 भगवतीआराधना, पृ. ५४-५५. 373 संवेगरंगशाला, गाथा ३४५७.
समवायांगसूत्र, पृ. ५४.
भगवतीआराधना, पृ. ५६. 376 संवेगरंगशाला, गाथा ३४५८.
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