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जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 161
नासिका-भाग से चलती है और सुषुम्ना नाड़ी दोनों भागों से चलती है। ईंडा और पिंगला नाड़ी क्रमशः ढाई घड़ी तक चलती है और सुषुम्ना नाड़ी एक क्षणमात्र चलती है।"२६८
प्रस्तुत कृति में इस विषय पर अन्य आचार्यों का मत इस प्रकार बताया गया है - "ईंडा नाडी पाँच घड़ी तक निरन्तर चलती है एवं पिंगला नाड़ी पाँच घड़ी में लगभग छः प्राण कम चलती है और शेष छः प्राण सुषुम्ना नाड़ी चलती है। इस तरह तीनों नाड़ी दस घड़ी तक चलती हैं।299
___"इसमें इंडा नाड़ी को चन्द्रनाड़ी और पिंगला को सूर्यनाड़ी भी कहा गया है। परमहर्षि गुरु का कहना है - आयुष्य का विचार करते समय वायु अन्दर प्रवेश करती है, तो वह व्यक्ति जीवित रहता है और यदि वाय बाहर निकलती है, तो वह मृत्यु को प्राप्त होता है। जिसकी चन्द्रनाड़ी चलने के समय सूर्यनाड़ी चलती है, अथवा सूर्यनाड़ी के चलने के समय चन्द्रनाड़ी चलती हो, इस तरह दोनों नाड़ी अनियमित चलती हो, तो उस पुरुष का जीवन छ: महीने शेष है- ऐसा जानना
चाहिए।300
इसमें साथ ही यह उल्लेख किया गया है - "उत्तरायण के दिन से पाँच दिन तक अखण्ड सूर्यनाड़ी चले, तो उसकी आयु दो वर्ष की है और पन्द्रह दिन चले, तो एक वर्ष की जानना चाहिए। इसी तरह उत्तरायण के दिन से बीस दिन तक लगातार सूर्यनाड़ी चले, तो तीन महीने के पश्चात् मृत्यु होती है, छब्बीस दिन चले, तो दो महीने बाद, सत्ताईस दिन चले, तो एक मास बाद, अट्ठाईस दिन चले, तो पन्द्रह दिन बाद, उनतीस दिन चले, तो दस दिन बाद, तीस दिन चले, तो पाँच दिन बाद, इकतीस दिन चले, तो तीन दिन बाद, बत्तीस दिन चले, तो दो दिन बाद और तैंतीस दिन चले, तो एक दिन बाद मृत्यु होती है। 301
प्रस्तुत ग्रन्थ में नाड़ीज्ञान से अन्य अनेक घटनाओं के घटने का चित्रण भी किया गया है। एक दिन पूरे समय सूर्यनाड़ी चलती हो, तो कुछ उत्पात की सूचना देती है।
५. निमित्त-द्वार :- संवेगरंगशाला में जिनचन्द्रसूरि निमित्त-द्वार का वर्णन करते हुए कहते हैं- "जिसको चलते-चलते या खड़े रहते, बैठते, अथवा
298 सवेगरंगशाला, गाथा ३१२३-३१२६ 299 संवेगरंगशाला, गाथा ३१२७-३१२६. 300 विगरंगशाला, गाथा ३१३०-३१३२. 301 संवेगरंगशाला, गाथा ३१३३-३१३६.
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