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152 / साध्वी श्री प्रियदिव्यांजनाश्री
इसी तरह के अन्य कारण भी उपस्थित हो जाने पर साधक अनशन का अधिकारी होता है। संक्षेप में कहें, तो मारणान्तिक- उपसर्ग, अतिवृद्धावस्था और असाध्य रोग की स्थिति में ही व्यक्ति समाधिमरण ले सकता है। एक स्वस्थ व्यक्ति, यदि वह नैतिक- आचरण करते हुए अपनी साधना या संघ - सेवा करने में सक्षम है- समाधिमरण ग्रहण नहीं कर सकता है। जब व्यक्ति का शरीर अपनी संयम-साधना में असमर्थ हो जाए और अपने लिए और संघ के लिए भारभूत हो, तभी वह समाधिमरण ग्रहण कर सकता है।
आचार्य समन्तभद्र के अनुसार प्रतिकाररहित असाध्य रोग को प्राप्त, मारणान्तिक-उपसर्ग, दुर्भिक्ष, जरा व रुग्नता की स्थिति में, अथवा अन्य किसी कारण के उपस्थित होने पर निकट भविष्य में मृत्यु के अपरिहार्य बनने पर साधक संलेखना कर सकता है। 270
सागारधर्मामृत के अनुसार आयुष्य का अन्त (मृत्यु) निकट दिखाई दे, अथवा किसी उपसर्ग के उपस्थित होने पर यह निश्चित हो कि अब जीवन का विनाश सन्निकट है - विधिपूर्वक महाव्रतों एवं अनशन स्वीकार करके दर्शन, आदि प्रतिमा-विषयक जो नित्य नैमेत्तिक - क्रियाएँ कही हैं, उन्हें सफल करना चाहिए । जीवन भर जो धर्म किया है, उसकी सफलता समाधिपूर्वक मरण से ही सम्भव है, अन्यथा वह सब निष्फल हो जाता है। 271
उपर्युक्त विवेचन के अनुसार समाधिपूर्वक देहत्याग के निम्न अवसर, अथवा परिस्थितियाँ होती हैं, जैसे :
१. बाढ़, दुर्भिक्ष, अकाल, सूखा, आदि विषम परिस्थितियों में जब खाद्य-पदार्थों की आपूर्ति सुगमता से सम्भव न हो और उसके अभाव में जीवन जाने का भय हो तथा अपने धर्म से पतित हो जाने की सम्भावना हो, जैसे- शरीर बेचकर, किसी की हत्या करके, किसी का धन - अन्न चुराकर जीवन बचाना पड़े, आदि।
२. जरा, अर्थात् अत्यधिक वृद्धावस्था के कारण या तपादि की साधना के कारण सभी इन्द्रियों की शक्ति क्षीण हो गई हो, अपने आवश्यक कार्यों के सम्पादन के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता हो, शरीर जब भारभूत हो गया हो, इत्यादि ।
270 उपसर्गे दुर्भिक्षे जरसि रूजायां च निःप्रतीकारे। धर्माय तनुविमोचनमाहुः संलेखनामार्याः । । सागारधर्मामृत, पू. १६०. सागारधर्मामृत गाथा ८१६
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