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154 / साध्वी श्री प्रियदिव्यांजनाश्री शान्त (सौम्य) प्रकृतिवाला, सज्जनों से सम्मानित हो, वह आराधना के योग्य है एवं इससे विपरीत क्रूरकर्मी, मदिरापान करनेवाला, मांस एवं मादक वस्तुओं का सेवन करनेवाला, स्त्री, बाल, वृद्ध की हत्या करनेवाला, चोरी व परस्त्री सेवन में तत्पर, असत्य वचन कहनेवाला तथा धर्म की हँसी करनेवाला, इत्यादि पुरुष भी यदि अन्त में वैराग्य का निमित्त प्राप्त करके प्रायश्चित्त लेकर पश्चाताप करनेवाला हो, परम उपशमभाव को प्राप्त करनेवाला हो एवं शुभ-आशयवाला हो, वही धीर पुरुष आराधना (समाधिमरण) ग्रहण करने के योग्य कहा गया है। इस प्रसंग में वंकचूल एवं चिलातिपुत्र के कथानक विस्तार से दिए गए हैं।
उपासकदशांग 273 में भी समाधिमरण लेनेवाले व्यक्ति की योग्यता का वर्णन किया गया है, जैसे-आनन्द, कामदेव, चुलनीपिता, सुरादेव, चुल्लशतक, कुंडकौलिक, सकडालपुत्र, गोशालक, महाशतक, नन्दिनीपिता, सालिहीपिता, आदि ने श्रावक की प्रतिमाओं का वहन करते हुए वृद्धावस्था में समाधिपूर्वक देहत्याग किया
था।
भगवतीआराधना 274 के अनुसार जिसके दुःसाध्य व्याधि हो, अथवा श्रामण्य-जीवन को हानि पहुँचानेवाली वृद्धावस्था हो, अथवा देवकृत, मनुष्यकृत और तिर्यचकृत उपसर्ग हो एवं अनुकूल बन्धु या मित्र हों, या प्रतिकूल शत्रु हों, जो चारित्र का विनाश करनेवाले हों, भयंकर दुर्भिक्ष हो, अथवा जंगल में भटक गया हो एवं जिसके चक्षु दुर्बल हों या जिसके श्रोत्र दुर्बल हों, जो जंघाबल से हीन हो, अथवा विहार करने में असमर्थ हो, इस प्रकार उक्त कारणों के अतिरिक्त अन्य भी प्रबल कारण उपस्थित होने पर विरत, अथवा अविरत साधक समाधिमरण ग्रहण करने योग्य होता है। आराधनापताका75 में भी समाधिमरण लेनेवाले की योग्यता के सम्बन्ध में यही बात उपलब्ध होती है।
उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार संयमशील, जितेन्द्रिय और चारित्रयुक्त सकाम और अकाममरण के भेद जाननेवाला तथा मृत्यु के स्वरूप का ज्ञाता एवं मृत्यु से नहीं डरनेवाला व्यक्ति समाधिमरण के योग्य है।276
___ मरणविभक्ति के अनुसार शरीर और कषाय को क्षीण करनेवाला व्यक्ति समाधिमरण के योग्य है, अर्थात् विभिन्न प्रकार के तप, अनशन की सहायता से
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21 उपासकदशांग - प्रथम अध्ययन से दस अध्ययन के आधार पर।
भगवतीआराधना, गाथा ७०, ७१, ७२, ७३. 275 आराधनापताका, गाथा ५८ - ६१. 276 उत्तराध्ययन - ५/२६.
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