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50 / साध्वी श्री प्रियदिव्यांजना श्री
अनियत विहार करने से दर्शनशुद्धि, | पर नहीं रुकना तथा अनियत विहार संवेग - निर्वेद द्वारा धर्म में स्थिरीकरण करते रहने का उल्लेख है। इसमें भी छः आदि छः गुणों की प्राप्ति का निरूपण गुणों की प्राप्ति का निरूपण समान है। है। भगवती आराधना में "राजा के अनियत विहार" - इस द्वार का उल्लेख उपलब्ध नहीं है।
८. राजा के अनियतविहारविधिद्वार का उल्लेख है।
६. परिणामद्वार में आठ अन्तरद्वार हैं, इनमें गृहस्थ परिणामों का विस्तृत उल्लेख मिलता है।
१०. त्यागद्वार में पाँच प्रकार की शुद्धि- ज्ञान, दर्शन, चारित्र, विनय एवं आवश्यक तथा पाँच प्रकार के विवेक इन्द्रिय, कषाय, उपधि, आहार पानी एवं शरीर का त्याग करने का उल्लेख है।
११. मरणविभक्तिद्वार में मरण के १७ प्रकारों का स्वरूप बताया गया है।
१२. अधिगतमरणद्वार में पण्डितमरण एवं बालमरण का स्वरूप बताते हुए ५ प्रकार के मरण का निर्देश है।
१३. श्रेणीद्वार में भावों की श्रेणी में चढ़ने को, अर्थात् ऊपर से ऊपर के गुणस्थानों को प्राप्त करने को कहा गया है।
१४. भावनाद्वार में दो प्रकार
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७. इस परिणाम अधिकार में व्यक्ति अपने आत्महित की चिन्ता करता हुआ आत्मसाधना में जुड़ता है।
८. इसमें मुनि शेष परिग्रह का त्याग कर कमण्डल, पिच्छी आदि संयम के उपकरण को ही पास में रखते हैं। भगवती आराधना में पूर्वपीठिका में ही मरण के १७ भेदों का उल्लेख सम्प्राप्त होता है। इसमें इन पांच मरणों का भी उल्लेख पूर्वपीठिका में किया गया है।
६. इसमें कहा गया है कि व्यक्ति को भावश्रिति पर आरोहण करके विहार करने का प्रयत्न करना चाहिए।
१०. भावना, अर्थात् अभ्यास
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