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74 / साध्वी श्री प्रियदिव्यांजना श्री
सौम्य ३३. परोपकारी ३४. षड्रिपुओं को जीतनेवाला और ३५. इन्द्रियों को वश में करनेवाला |
आचार्य हेमचन्द्र ने मार्गानुसारी के इन पैंतीस गुणों पर चिन्तन करते हुए अन्त में लिखा है कि 'गृहीधर्माय कल्पते', अर्थात् इन गुणों को जो धारण करता है, वह सद्गृहस्थ की भूमिका पर प्रतिष्ठित होता है । एक सद्गृहस्थ में मानवता के गुण होना चाहिए, अतः चतुर्थ गुणस्थानवर्ती सम्यग्दृष्टि श्रावक में इन मानवीय गुणों का होना आवश्यक है। प्रवचनसारोद्धार आदि ग्रन्थों में मार्गानुसारी के पैंतीस गुणों के स्थान पर संक्षेप से निम्न इक्कीस गुण ही उल्लेखित हैं। वे इस प्रकार
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१०.
१. विशाल हृदयता २. स्वस्थता ३. सौम्यता ४ लोकप्रियता ५. अक्रूरता ६. पापभीरूता ७. अशठता ८. सुदक्षता ( दानशील ) ६. लज्जाशीलता दयालुता ११. गुणानुराग १२. प्रियसम्भाषण १३. माध्यस्थवृत्ति १४. दीर्घदृष्टि १५. सत्कथन एवं सुपक्षयुक्त १६. नम्रता १७. विशेषज्ञता १८. वृद्धानुगामी १६. कृतज्ञ २०. परहितकारी (परोपकारी ) २१. लब्धलक्ष्य ( जीवन के साध्य का ज्ञाता ) .
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पण्डित आशाधरजी ने अपने ग्रन्थ सागार - धर्मामृत में निम्न गुणों का निर्देश किया है± :- १. न्यायपूर्वक धन का अर्जन करनेवाला २. गुणीजनों को मानने वाला ३. सत्यभाषी ४. धर्म, अर्थ और काम (त्रिवर्ग) का परस्पर विरोध-रहित सेवन करनेवाला ५. योग्य स्त्री, योग्य स्थान ( मोहल्ला) एवं योग्य मकान से युक्त ६. लज्जाशील ७. योग्य आहार ८. योग्य आचरण ६. श्रेष्ठ पुरुषों की संगति १०. बुद्धिमान् ११. कृतज्ञ १२ जितेन्द्रिय १३. धर्मोपदेश श्रवण करनेवाला १४. दयालु एवं पापों से डरनेवाला ऐसा व्यक्ति सागारधर्म ( गृहस्थधर्म) का आचरण करे। जिन गुणों का उल्लेख सागारधर्मामृत में प्राप्त होता है, उनमें से अधिकांश का निर्देश दोनों पूर्ववर्ती आचार्यों के द्वारा किया जा चुका
संवेगरंगशाला में श्रावक के पैंतीस मार्गानुसारी गुणों का, अथवा श्रावक के इक्कीस गुणों का स्पष्ट रूप से एक स्थान पर कोई उल्लेख तो नहीं है, किन्तु गाथा क्रमांक १५०७ से १५२३ तक पन्द्रह गाथाओं में गृहस्थ की सामान्य आचार रूप आसेवन शिक्षा का उल्लेख है। इसके अन्तर्गत निम्न गुणों का उल्लेख प्राप्त होता है:
81 प्रवचनसारोद्धार २३६
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संवेगरंगशाला, गाथा - १५२०/१५२१.
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