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46 / साध्वी श्री प्रियदिव्यांजनाश्री आराधनापताका में इसके आठ प्रतिद्वारों का उल्लेख किया है, वहाँ संवेगरंगशाला में जिनचन्द्रसूरिजी ने इसके नौ द्वार बताए हैं। इस प्रकार आराधनापताका की अपेक्षा संवेगरंगशाला के चतुर्थ समाधिमरण लाभ नामक द्वार में प्रतिद्वारों की संख्या में एक का अन्तर है, क्योंकि जहाँ वीरभद्राचार्य ने इसके आठ द्वार कहे हैं, वहीं जिनचन्द्रसूरिजी ने इसके नौ द्वार बताए हैं। संवेगरंगशाला में आराधनापताका की अपेक्षा प्रतिपत्तिद्वार नामक एक द्वार अधिक है। आराधनापताका में प्रतिपत्ति नामक द्वार का कोई उल्लेख नहीं है। नामों की अपेक्षा से शेष नामों में समानता ही है; मात्र एक अन्तर यह है कि जहाँ आराधनापताका में आठवें प्रतिद्वार का नाम विजहना है, वहीं संवेगरंगशाला में उसका नाम शरीर-त्याग है; लेकिन विषय-वस्तु की दृष्टि में कोई अन्तर नहीं है, किन्तु दोनों ही इस द्वार में क्षपक के त्यक्त शरीर या मृतदेह के विसर्जन की विधि का उल्लेख करते हैं। इस प्रकार हम यह देखते हैं कि आराधनापताका और संवेगरंगशाला में मूल द्वारों में और उनके प्रतिद्वारों के लेकर कोई विशेष महत्वपूर्ण अन्तर परिलक्षित नहीं होता है।
___ यद्यपि आराधनापताका की अपेक्षा संवेगरंगशाला के प्रथम परिकर्म-विधिद्वार में चार द्वार, तृतीय ममत्वविच्छेद में एक द्वार और चतुर्थ समाधिलाभद्वार में एक प्रतिद्वार- इस प्रकार छः प्रतिद्वार अधिक हैं। इसी प्रकार गाथाओं की संख्या भी बहुत अधिक है। जहाँ आराधनापताका में लगभग एक हजार गाथाएं हैं, वहीं संवेगरंगशाला में दस हजार गाथाएं हैं। गाथाओं की संख्या में एक अनुपात दस का अन्तर है। इस अन्तर का मुख्य कारण समाधिमरण सम्बन्धी विवेचना न होकर मुख्यतया संवेगरंगशाला में प्रत्येक विषय पर विस्तार से उदाहरण के रूप में कथानकों का प्रस्तुतिकरण है- संवेगरंगशाला में लगभग सभी कथाएँ विस्तार से उल्लेखित हैं, जबकि आराधनापताका में मात्र कथा का नाम-निर्देश ही उपलब्ध होता है। फिर भी यह बात हमें स्वीकार करना होगी कि जिनचन्द्रसूरि ने आराधनापताका को आधारभूत मानकर उसे विस्तार देते हुए संवेगरंगशाला की रचना की। भगवतीआराधना और संवेगरंगशाला का तुलनात्मक अध्ययन :
संवेगरंगशाला में सर्वप्रथम मंगल और अभिधेय करने के पश्चात् आराधना का स्वरूप बताते हुए आराधना के दो भेदों का उल्लेख किया गया है। एक- सम्यक्ज्ञान, दर्शन, चरित्र और तपरूप सामान्य आराधना एवं दूसरीसमाधिमरणरूप विशेष आराधना। पुनः, विशेष आराधना को निम्न दो वर्गो में विभाजित किया गया है- १. संक्षिप्त विशेष आराधना, तत्काल मृत्यु का वरण एवं २. विस्तृत विशेष आराधना, अर्थात् विशेष तप आदि करते हुए मृत्यु का वरण
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