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30 / साध्वी श्री प्रियदिव्यांजनाश्री निर्देश करते हुए कौन सी लेश्यावाला कहाँ उत्पन्न होता है, इसका सम्यक् विवेचन किया गया है। ८. आठवें फलद्वार में उत्तम, मध्यम और जघन्य-ऐसे तीन प्रकार के क्षपकों का उल्लेख करते हुए इसमें कौनसी लेश्यावाला क्षपक उत्तम, मध्यम अथवा जघन्य कहलाता है? इसका निरूपण है। मिथ्यात्वी में तेजोलेश्या नहीं होती है, सम्यक्त्व आदि गुणवाला ही आराधक कहलाता है, इसका भी निर्देश है। इसके पश्चात् सिद्ध के जीवों के शाश्वत सुखों के स्वरूप, एवं भक्तपरिज्ञामरण, इंगिनीमरण एवं पादपोपगमनमरण के श्रेष्ठ फल और गुणश्रेणी के स्वरूप का विस्तृत एवं व्यवस्थित विवरण प्रस्तुत किया गया है। अन्त में भव्य जीवों के लिए बोधप्रद तत्त्व का निरूपण है। ६. नौवें विजहणाद्वार में कहा गया है कि अनशन करने वाले क्षपक की मृत्यु पर शोक नहीं करते हैं। आगे मुनियों के लिए करने योग्य भवस्थिति के चिन्तन का विवरण है, साथ ही क्षपक की अनुमोदना, क्षपक की मृत देह की विजहणा, अर्थात् आगमोक्त महापरिष्ठापनिका की प्राचीन विधि का एवं निमित्तों के फल का रोचक प्रतिपादन प्रस्तुत किया गया है। उपसंहार एवं महासेन मुनि की शेष आराधना :
___ इस प्रकार चार मूलद्वारों में कहे गए उपदेश को सुनकर महासेन मुनि द्वारा की गई संलेखना का विवेचन किया गया है। इसी सन्दर्भ में अनशन हेतु की गई प्रार्थना, गौतमस्वामी द्वारा निर्यापक को सौंपने के लिए दी गई सम्मति एवं आशीर्वाद का विवरण प्रस्तुत किया गया है। इसके पश्चात् महासेन मुनि के द्वारा अनशन स्वीकार करके की गई सुन्दर आराधना हेतु इन्द्र द्वारा की गई प्रशंसा, देवता द्वारा दिए गए अनुकूल -प्रतिकूल उपसर्ग, महासेनमुनि का मेरुतुल्य अनुपम धैर्य, आदि का निरूपण किया गया है। साथ ही इसमें महासेन राजा को अनशन द्वारा सर्वार्थसिद्ध विमान में देव-भव प्राप्त करने का निर्देश है। इसके पश्चात् निर्यापक आचार्य आदि के द्वारा की गई मृतक की विधि एवं गौतमस्वामी से महासेन राजा के भावी भव की पृच्छा, तथा गौतमस्वामी द्वारा बताया गया भविष्यफल, सर्वार्थसिद्ध विमान से महाविदेह में राजपुत्र के रूप मे जन्म, यहाँ की गई सम्यक् आराधना के प्रभाव से वहाँ भी उत्कृष्ट वैराग्य का उत्पन्न होना, फिर संयम स्वीकार करना, अखण्ड आराधना करते हुए अन्त में पादपोपगमनमरण द्वारा निर्वाण की प्राप्ति का अति सुन्दर एवं विशद विवरण प्रस्तुत किया गया है। ग्रन्थ के अन्त में महासेन मुनि के कथानक का श्रवण कर मुनियों द्वारा की गई अनुमोदना, कृतज्ञभाव से गौतमस्वामी की स्तुति एवं चारित्र में विशेष उद्यम करने
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