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अग्नि देवता
ऋग्वेदका मुख्य देवता अग्नि है. प्रिथिवो स्थानीय देवता हैअकट कर चुके हैं। वेद में भी इसी
· यथा
अन्य सब गौरा देवता हैं । निरुकाका जम सिद्धान्नको माना गया है।
सूर्यो नो दिवस्पातु वातो अन्तरिक्षात | अभिर्नः पार्थि
वेभ्यः ॥ ऋ० १०/१५९/१
अर्थात – धुलोक से सूर्य हमारी रक्षा करें व अन्तरिक्ष लोकसे वायु तथा पृथिवी लोक में हमारी रक्षा करे । तथा शतपथ ब्राह्मण में है कि-
अस्मिन्नेव लोके, अभि, वायुमन्तरिक्षे दिव्येव सूर्यम् ।
११ । २।३।१
अर्थात् उस प्रजापतिने देवों को उत्पन्न करके तीन लोकांमे स्थापित किया ।
अग्निको इस प्रथिवी लोकमें, वायुको अन्तरिक्षमें और सूर्यको लोकमें। उपरोक प्रमाणों से यह सिद्ध होगया कि अभि पृथ्वी स्थानीय देवता है। तथा ऋग्वेद और अथर्ववेदका भी पृथिवीलोक है। तथा दोनों वेदों का देवता भी अग्नि ही है। अतः यह स्पष्ट है कि
वेदोंका मुख्य देवता है । भारत में अमि पूजा के प्रथम प्रचारक अंगिरा ऋषि हुये हैं। यह प्रख्यात वंशके थे। ग्रीक, रोमन, परशियन, आदि जातियों में अभिकी पूजा सदासे चली आती है । ग्रीक, लोगोंका कथन है कि — जो देवता मनुष्योंकी भलाई के लिये पहले पहल स्वर्गसे श्रमिको चुरा कर लाया उसका नाम --