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तथा च मरुतगण अहुत भोजी हैं। अर्थात् ये हवन किये हुए पदार्थों को नहीं स्वाते। जैसाकि अक्षुतादो के देवानां मरतः॥ : शत० ४।४।३।१६ में लिखा है। इनके लिये प्रथक बलि दी जाती है।
मारुतः सप्तकपालः पुरोडासः तां० प्रा० २१०१०१२३
तथा च इन मरुतोंके सात सात प्रकार आयुध, तथा आभरण एवं सात २ प्रकारकी ही दीप्तियां हैं। समानां सप्त ऋष्टय सप्त ः मान्येषाम् ॥ऋ० ८८॥ ऋग्वेद मं० ५।५२।१७ में इन मरुतोंकी संख्या ४९ बताई है। भिन्न भिन्न पदार्थों के अधिपति
भिन्न २ देवता सविता प्रसवानामधिपतिः । अग्नि वनस्पतीनामधिपतिः । यावा पृथिवीदातरणामधिपत्नी । वरुणोऽपामधिपतिः । मित्रावरुणी वृष्टयाधिपती । मरुतः पर्वतानामधिपतयः । सामोवीरु धाधिपतिः । वायुरन्तरिक्षस्याधिपतिः । सूर्यचक्षुषामधिपतिः । चन्द्रमानक्षत्राणामधिपतिः । इन्द्रो दिवोधिपतिः । मरुतां पितापशूनामधिपतिः मृत्युःप्रजानामधिपतिः । यमः पितणामधिपतिः ।। अथर्व० ५। २४ ।
तथा पैप० में अन्य देवोंको भी अधिपति कहा है। ग्रथामित्र पृथिवीका, वसु सम्वत्सरका सम्बत्सर ऋतुओंका । विष्णु पर्वतोंका । त्वष्टा, रूपोंका । समुद्र नदियोंका । पर्जन्य (मेघ) श्रीषधियोंका। बृहस्पति देवताओंका। प्रजापति प्रजाओंका । (अर्थ) सविता प्रेरणाश्रोंका अधिपति । अग्नि वनस्पतियोंका । द्यावा पृथ्वी