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दानियोंकी । वरुण जलोंका । मित्रवरुण, वृष्टिके । मरुत पर्वतोंके । सोम, पोधका । वायु अन्तरिक्षका । सूर्य नेत्रोंका । चन्द्रमा नक्षत्रका | इन्द्र चौका । मरुतोंका पिता । रुद्र पशुओं का । मृत्यु प्रजाओंका । यम पितरोंका | इस प्रकार इन देवताओंके स्थान, अधिकार कर्म, जन्मस्थान व मातापिता, साथी, वाहन कायक्षेत्र, योनि जाति आदि सब पृथक पृथक हैं। इनकी पृथकता इनके को सिद्ध करने के लिये अटल प्रमाण है वैदिक कवियोंसे लेकर आज तक सभी स्वतन्त्र प्रज्ञ विद्वानों का यही सिद्धान्त है । तथा ये देवता देवता ही हैं. न ये ईश्वर है और न ईश्वर की शक्तियाँ | ये सब कल्पनायें निराधार एवं साम्प्रदायिक हैं। इन कल्पनाओं से न तो वेदोका ही महत्व बढ़ता है और न ईश्वर की सिद्धि हो सकती हैं ।
श्री पावगी महोदय का मत
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श्री नारयण भवनरावपावगी, अपनी पुस्तक मूलस्थान' में लिखते हैं कि "यद्यपि ऋग्वेदमें इस बातका संकेत है कि इन भिन्न भिन्न देवताओं में कोई भी छोटा बड़ा नहीं है (नहि at स्यर्भको देवासों न कुमारकः । ऋ० ८ | १० | १) सबके सत्र श्रेष्ठ हैं। (विश्वे सतो महान्त इति । ऋ०८ ३० १ १ ) सो भी ऋचा के पढ़ने से यह स्पष्ट मासूम पड़ता है कि हमारे वैदिक देवताओंमें छोटाई बड़ाईका कुछ भेव वास्तव में था । अतः इस यातका समुचित विचार करके ही हमने श्रमिको प्रथम स्थान दिया है। क्योंकि वे ऋग्वेद में देवताओं के देवता ( देवो देवानां ऋ० ११३१ १ १ ) माने गये हैं।"